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भीलों के बाण आते देख टेढ़ा-मेढ़ा दौड़ने लगा, जिससे बाण उसे नहीं लगते थे। बाणों की वर्षा होते देख मायादित्य घबरा गया। परन्तु प्राणों का सवाल था । 'ऐसा ही कोई बाण आकर मेरा काम तमाम कर देगा तो?' जान बचाने के लिये तेज गति से दौडने लगा। यहां ज्यादा चिन्ता किसकी ? रत्नों की या प्राणों की ?
महाराजा कुमारपाल नवरात्रि में बकरे की बलि देने के लिये तैयार नहीं थे। कंटकेश्वरी देवी बोली - 'बकरे की बलि देनी है या नहीं? नहीं तो इस त्रिशूल से खत्म कर दूंगी।' इतनी धमकी देने पर भी राजा बलि देने के लिये तैयार न हुआ। देवी ने सर में ऐसा त्रिशूल भोंका कि भयंकर वेदना होने लगी। शरीर कुष्ठ रोगी जैसा हो गया, फिर भी वेदना से बचने के लिये दयाधर्म छोड़ने के लिए तैयार नहीं । क्योंकि दया प्राण है, इस प्राण को बचाने के लिये सब कुछ सहन करने की तत्परता है। उदायनमंत्री को बुलाकर कहा -
'देखो, ऐसी स्थिति है। मेरे लिए तो दीवाली आयी है। इतना सहकर भी दयाधर्म के पालन का अवसर मिला। परन्तु अज्ञानी लोग सुबह मेरा ऐसा शरीर देखकर कहेंगे कि 'देखा? बकरे का बलिदान नहीं दिया व धर्म की पूंछ पकड़कर रखीं, तो यह हालत हुई।' इस तरह दयाधर्म की निंदा होगी । इसलिये एक चिता तैयार करो, मैं चिता में जलकर मर जाऊंगा। लोगों को पता ही नहीं चलेगा कि देवी ने क्या किया था और राजा को क्या हुआ था?
यह क्या है? धर्म के लिये चाहे प्राण जायें तो जायें, परन्तु धर्म का भंग करके प्राण बचाने का प्रयास न होना चाहिये।
मायादित्य फंस गया :
धर्म ही सच्चे प्राण लगने के बाद उसकी रक्षा के लिये संसार की प्रत्येक प्रवृत्तियों में कम से कम मानसिक धर्म को तो प्रवेश दिया जा सकता है। बाह्य प्राण बचाने के लिये मायादित्य दौड़ा चला जा रहा है, परन्तु जंगली लूटेरे भील उसका पीछा कहाँ छोड़नेवाले थे? वे भी दौड़े चले जा रहे हैं और मायादित्य पर बाण बरसाते जा रहे हैं। एक बाण मायादित्य के पांव पर जोर-से लगा। मायादित्य गिर गया। इतने में तो वह टोला उसके पास आ पहुंचा। भीलोंने उसके कपड़ों की तलाशी ली, उनमें १० रत्नों की पोटली मिल गयी। वह ले जाकर अपने सेनापति को दी।
मायादित्य का थोड़ा-बहुत नसीब जागता होगा, इसलिये सेनापति ने अपने सैनिकों से कहा - 'इसे मारना मत, परन्तु इसे बांधकर कहीं बांस के जाल में डाल दो।'
. सेनापति के हुकम की ही देर थी। लूटेरों ने मायादित्य को घुटनों पर बिठाकर, हाथपांव बांधकर गठरी की तरह उठाकर एक बांस के जाल में बंधे सर रख दिया । बेचारा मायादित्य वहाँ से निकले कैसे? हाथ ऐसे बांधे हुए हैं कि थोड़ा-भी खिसक नहीं सकता,
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