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________________ स्कूल में आयें और अगर तभी फिर से उनकी परीक्षा ली जाय तो कितने विद्यार्थी उत्तीर्ण होंगें ? और पहले दूसरे नंबरवाले विद्यार्थी को भी कितने मार्क मिलेंगे? आज की ग्रन्थ -लेखन की पद्धति भी अजीब हैं । ग्रंथ में सौ-पचास शास्त्रों के रेफरेन्स मिलते हैं, अमुक अमुक पाठ-साक्ष्य देखने को मिलते हैं, परन्तु इसका क्या यह अर्थ है कि ऐसा सभी लेखको को इतने सारे शास्त्रों का ज्ञान है ? नहीं जी, यह तो केवल उन उन शास्त्रों की भूमिकाएँ पढ लेना, उनमें से अपने लेख के विषयों का ही जरा सा भी समर्थन कहीं मिले तो ऐसी एकाध बात ढूँढ कर ग्रंथमें से उसके पाठके साथ चुन लेना और अपने लेख में उद्धृत कर लेना । अथवा यों भी ग्रंथों में बीच के कोई भी दो चार पृष्ठ देख कर उनमें से एकाध बात जरा भी ऐसी मिल जाए जिसे अपने लेख में कहीं भी किसी तरह से जोड़ा जा सके तो बस; इसके पाठ तथा ग्रन्थ के नाम के साथ उदधृत कर लिया, और ऐसे ५० -७५ साक्ष्य आ गये कि लेख का आकार महापांडित्य पूर्ण माना जाता जी, यह तो केवल उन उन शास्त्रों की भूमिकाएँ पढ लेना, उनमें से अपने लेख के विषयों का ही जरा सा भी समर्थन कहीं मिले तो ऐसी एकाध बात ढूंढ कर ग्रंथमें से उसके पाठके साथ चुन लेना और अपने लेख में उद्धृत कर लेना। अथवा यों भी ग्रंथों में बीच के कोई भी दो चार पृष्ठ देख कर उनमें से एकाध बात जरा भी ऐसी मिल जाए जिसे अपने लेख में कहीं भी किसी तरह से जोड़ा जा सके तो बस; इसके पाठ तथा ग्रन्थ के नाम के साथ उद्धृत कर लिया, और ऐसे ५० -७५ साक्ष्य आ गये कि लेख का आकार महापांडित्य - पूर्ण माना जाता हैं। | सच्ची (वास्तविक) अभ्यास पद्धति : देखना तो यह है कि जो व्यक्ति जिस शास्त्र का विद्या का, विद्वान माना जाता हो उसे अपने सामने पुस्तक का आधार लिए बिना जबानी पढाना आता है या नहीं? खुद मुँहसे बोल कर ऐसा समझाता जाय कि जिससे विद्यार्थी अपने आप पुस्तक की एक एक लाइन बराबर समझ सकें। शिक्षक के पास चाहे जहाँ चाहे तब (कहीं भी - कभी भी) विद्या माँगो न ? तो वह तो मानो जीवंत - मूर्तिमान् शास्त्र की तरह बोलने ही लग जाए | कारण यही कि खुद पढा था निश्चित पद्धति से, और गुरु के महान् विनय- सेवा को सुरक्षित रखते हुए पढा ८३ ८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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