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रानी को स्वप्न :
बस, अब देवी का वरदान है कि 'पुत्र हो', सो कोई निष्फल नहीं जाए ॥ । जाए तो बड़े व्यक्ति का वचन ही क्या ? वह तो तुच्छ, क्षुद्र-अधम आदमियों के शब्द जिन्हें उन शब्दों को निष्फल बनाने में रदद् करने में और कह कर तुरन्त मुकर जाने में कोई हिचकिचाहट नहीं कोई विचार नहीं होता ।
उत्तम पुरुष तो वचनबद्ध ही होते हैं, इसीलिए पहले तो बोलते ही तोलकर हैं और उसके बाद बोला हुआ पालते ही हैं ।
देवीने कुछ ऐसी अनुकूलता की जिससे रानी के उदर में गर्भ रहा । उस रात रानी को एक सुन्दर सपना आया । सपने में उसने देखा कि एक अति सुगन्धपूर्ण कमल की माला चन्द्र से लिपटी पड़ी है ।
रानी सपना देख कर जाग उठी। अगर बुरा स्वप्न आया हो तब तो जग कर वापस सो जाना चाहिए जिससे उसका फल न मिले वह निष्फल हो जाए | परन्तु यह तो अच्छा स्वप्न है अतः रानी जग कर धर्म-ध्यान में लग जाती है, महापुरूषों की कथा याद करती है, इष्ट देव का स्मरण करती है, स्तुति - गुणगान करती है और इस तरह करके रात्रि व्यतीत करती है । प्रश्न उठता है कि -
प्र० स्वप्न शुभ है तो फलनेवाला ही है, इसमें फिर धर्म-ध्यान की क्या आवश्यकता ?
उ० सामान्यतया यह नियम है कि मूल्यवान वस्तु के साथ उसके अनुरूप परिकर होता है । गरीब या मध्य वर्ग का व्यक्ति अकेला बाहर रवाना होता है। परन्तु धनवान के साथ कोई न कोई सहचर होता है । तांबे -पीतल की वस्तु वैसी ही रखी जाती है, परन्तु जवाहिरात का गहना योग्य पात्र या मंजुषा में रहता है । नगरजन का प्रवेश यों ही हो जाता है, परन्तु बडे सेठ या राजा या महात्मा का प्रवेश स्वागतपूर्वक कराया जाता है । बस इसी तरह अच्छी घटना की भविष्यवाणी करनेवाला स्वप्न आया तो उसके आगमन का स्वागत धर्मध्यान से करना चाहिए | तभी उसका मूल्यांकन किया माना जाए, उसका गौरव, आदर किया गया माना जाए। आदर किया हो उसके हिसाब से फल प्रदान में वह निश्चित बनता है ।
विशिष्ट धर्म साधना में भी ऐसी ही बात है ।
देवता गण मेरुगिरि पर प्रभु का जन्माभिषेक मना कर फिर उसकी खुशी में, उसके सम्मान में नंदीश्वरद्वीप जाकर उत्सव करते हैं । अरे यहीं क्या ? इन्द्र
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