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________________ कथाग्रन्थ एक अनूठी बहार लेकर हमारे समक्ष प्रस्तुत हो रहा है। जिस के प्रकाशन के लिए हमारी संस्था गौरव महसूस कर रही है । कुवलयमाला कथाग्रन्थ एक विशाल कृति है। उस के रहस्यों को उद्घाटित करनेवाला यह प्रकाशन भी दो-तीन खण्डों में प्रकाशित किया जानेवाला है, प्रस्तुत में यह प्रथम खण्ड प्रकाशित करते हुए असीम आनंद की अनुभूति कर रहे हैं । वाचक वर्ग को हमारी करांजलिबद्ध प्रार्थना है कि इसे अवश्य पढ़कर अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिये अग्रसर बनें। आशा है अनेक अज्ञानतिमिर मुकुलित नेत्रों का इस प्रकाशन से विकसन होगा। भीतर से एक सुनिश्चित भेदी आकाशवाणी बुलंदस्वर से गूँज उठेगी - अब तो संसार सागर से पार उतरना ही है । पू. पंन्यासश्री पद्मसेनविजयजी म. गणिवर्य ने इस पुस्तक का संकलन किया व अनेक गुणसंपन्न साध्वीश्री संस्कारनिधिश्रीजी ने पूर्ण उत्साह के साथ सहकार दिया है अत: उनके प्रति हम आभारी है एवं इस प्रकाशन में आर्थिक सहयोग देनेवाले के प्रति हम आभारी है । हमारे प्रकाशन में अगर मतिभेद से कुछ क्षतियाँ रह गई हो तो उस के लिये वाचक वर्ग हमें क्षमा करें। लि. कुमारपाल वि. शाह दिव्यदर्शन ट्रस्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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