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________________ प्रासंगिक याद आती है गुजरे हुए वर्षों की तो नज़र के सामने एक सुनहरा दृश्य खड़ा हो जाता है! एक पतली सी काया, जगमगाता चेहरा, वेधक दृष्टि, मेघ-सी गंभीर ध्वनि से पूज्य गुरुदेव प्रवचन सुना रहे हैं! प्रवचन क्या मानों संतृप्त हृदयों के उपर अमी की वर्षा ही कर रहे हैं। कलकता के चातुर्मास में पूज्यश्रीने कुवलयमाला कथाग्रन्थ पर प्रवचन फरमाये ! विशाल श्रोता वर्ग । समय पर उपस्थिति। डेढ़-डेढ घंटे तक जिज्ञासु श्रोता एकाग्र चित्त से व्याख्यान सुनते। कुवलयचन्द्र और कुवलयमाला के जीवनकिताब के उज्जवल एवं प्रेरक स्वर्णपृष्ठ पढ़ते-पढ़ते या सुनते-सुनते विस्मयभाव से कब शान्तरस की ओर प्रयाण चालु हो गया कुछ पता ही नहीं चलता है । कुवलयमाला कथा एक धार्मिक उपन्यास है। गुमराह युवावर्ग के विकृत मानस को सुप्रभावित करने में सक्षम है । नाटक-सिनेमा- टी. वी. व्हीडीयो के कल्चर से रंगे हुए जनमानस को सही मार्ग दिखाने वाला राहबर है। युवानी में विकृत मानसिक अनेक बिमारियों से घिरे हुए आवारा लोगों के लिए अच्छा चिकित्सक है । पूज्यपाद गंभीरहृदय श्रीसंघहितप्राधान्यदाता गुरुदेव श्रीमद् विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी म. सा. के प्रवचनों से यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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