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________________ करता जाता है, परोपकार - सेवा - कृतज्ञता बजाने के लिए भोग देता जाता है, शीलधर्म का पालन करता जाता है, नये-नये व्रत - नियम स्वीकारता जाता है, देवगुरु की भक्ति-पूजा, सन्मान - गुणगान करता जाता है, तप में आगे बढ़ता रहता है, त्याग में विकास करता रहता है, रोज नयी-नयी जिनवाणी सुनता रहता है, उसके चित्त में शुभ भावनायें रमती जाती हैं, जीवन में क्षमादि गुणों का अभ्यास हममें कितना बढ़ता है, इस पर से अपने धर्म-प्रेम का माप निकलता है । हृदय में संसार ज्यादा बसा है या धर्म ने ज्यादा स्पर्श किया हुआ है ? इसका हिसाब निकाला जा सकता है । आनन्द के स्वरुप पर प्रेम का माप निकलता है । वह प्रेम किस पर और कितनी डिग्री का है ? परमात्मा की पूजा परन्तु पराये द्रव्य लेकर ! वहाँ यदि अपना द्रव्य बचने का आनन्द रहा, तो पैसे पर ज्यादा प्रेम गिना जाएगा, परमात्मा पर नहीं । एकाशन किया, उसमें मिठाई मिली, तो आनंद हुआ ! आज दो-तीन बार भोजन यानी आहार-संज्ञा का पोषण करने से छूटने का आनन्द नहीं, परन्तु मीठा-मीठा मिलने का आनंद हुआ, तो तप पर ज्यादा प्रेम कैसा ? वह तो मीठे भोजन पर ही गिना जाएगा । किस बात का आनन्द और कितना आनन्द, इस पर से स्वयं ही समझ सकते हैं कि प्रेम किस पर है ? और कितने प्रमाण में ? धर्म पर कितना प्रेम ? जड़ का आनन्द कितना ? यहाँ दृढ़वर्मा राजा को जड़ का आनन्द है, इसीसे वह सुषेण की प्रशंसा करता है । परन्तु उसके दिल को उस बाल राजकुमार का पराक्रम आश्चर्यजनक लगता है । इसीलिये वह पूछता है - 'तो वह बालक कहा है ?' सुषेण कहता है, 'देव ! यहां द्वार पर ही खड़ा है ।' राजा कहता है 'अरे ! ऐसे रत्न को वहाँ खड़ा रखा जाता है ? लाओ, लाओ ! उसको यहाँ ले आओ ।' पराक्रमी बालक का प्रवेश : बालक राजसभा में प्रवेश करता है। सभा के बीच से वह मालवपति का बालपुत्र आ रहा है, उसकी चाल कैसी ? पिता का राज्य व माता-पिता के जाने पर भी बिल्कुल दीन-हीन मुँह किए बिना ओज भरी आँखों से सभा को आजु-बाजु से देखते हुए चलता है । एक शूरवीर सिपाही की अदा से राजा के पास आ पहुँचता है । साहसी पिता के पुत्र भी साहसी होते हैं; परन्तु यह नियम नहीं है, हाँ ? आज २८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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