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लोगों को दया :
सुबह हुई । रोने-पीटने के कारण लोग तो इकट्टे होने ही लगे थे । और उसमें फिर अब चंडसोम गाँव के बाहर जाकर चिता सुलगाकर उसमें गिर कर जल मरने की तत्परता दिखाता है; अतः लोगों को उसपर दया आ जाती है | यहाँ पूछिये न कि -
अपराधी पर गुस्से के बदले दया क्यों ?:
प्र. लोगों को चंडसोम पर उसके द्वारा की गयी हत्या पर गुस्सा न आवे ? दया कैसे आवे ?
उ. गुस्सा आवे; लेकिन दुनिया में देखो कि अपराधी यदि स्वयं ही अपराध का इकरार करता होगा और भारी पश्चात्ताप प्रकट करता होगा तो सामनेवालों की भावना उसके प्रति उभर आएगी | जीवन में यह अनुभव करने जैसा है। तुम्हारे हाथों कोई गलती हो गयी, कोई जल्दबाजी का काम हो गया, और सामने से कोई पूछ सकनेवाला व्यक्ति पूछने आया की 'ऐसा क्यों किया ? ' अब तुम यदि शीघ ही सहृदयतापूर्वक कह दो कि, 'मुझसे यह गलती हो गयी है, जरा जल्द बाजी कर बैठा हूँ' तो इसका असर होगा । __ वह व्यक्ति आवेश के साथ आया होगा कि 'इसे अच्छी तरह धमकाना है ।' लेकिन उसका वह आवेश शिथिल हो जाएगा । यह तो सामनेवाले के पूछने पर दुःख व्यक्त करने के साथ भूल की इतनी सामान्य सी स्वीकृति में होता है; परन्तु सामने से पूछे गये बिना भी यदि तुम खुद ही अपने अपकृत्य का जोरदार पश्चात्ताप प्रकट करते हो, हृदय-विदारक रुदन करते हो, गलती के बदले अब कोई सख्त सजा अपने आप भोगने की तैयारी करते हो तो क्या मजाल कि सामनेवाले के दिल में गुस्सा रह सके ? उसे पिघलना ही रहा । यह कैसा सरस मंत्र है।
दूसरे के क्रोध को पिघला कर उसमें दया उत्पन्न करने का मंत्र यह है कि हमारी | अपनी भूल को शुद्ध हृदय से और दुःख की संवेदना के साथ स्वीकार करना ।
घड़ी भर हमें लगे कि 'इस में हमारा अहं आहत होता है, हम छोटे हो जाते हैं ? अथवा कई बार हमें यह अनुचित (गैरवाजिब) भी पहले उचित (वाजिब) लगता हो तो अब ऐसा लगे कि अनौचित्य का अपने मुँह से कैसे स्वीकार किया जाय? घड़ी भर ऐसा लगे भी सही परन्तु यह लघु दृष्टि का विचार हैं, क्यों कि विचार करने योग्य तो यह है कि -
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