________________
नहीं चल सकता ? न उसे कौन कहने जाय कि, 'अरे! पर तुम्हारा क्या गया यदि उसने बहुतसी चीजें बनाई तो ?
नहीं, वह तो कहेगा, “मेरा कुछ जाए या न जाए इसका सवाल नहीं है । यह व्यर्थ खर्च हो रहा है सो असह्य है ।" स्वयं कृपण है अतः उदारता देख नहीं सकता ।
जैसी स्थिति इस कंजूस की वैसी झूठे, अनीतिमय, दुराचारी, छिछले (तुच्छ) पेटू, निंदक, चूगलखोर, घमंडी, लोभी आदि लोगों की दुर्दशा होती है। वे भी सत्यवादी प्रामाणिक, सदाचारी गंभीर तपस्वी, गुणग्राहक, नम्र, निर्लोभी आदि गुणसम्पन्न लोगों पर द्वेष (खार) रखनेवाले होते है। गुण पर खार क्यों ?
प्र. गुण पर खार (द्वेष ) रखने का क्या कारण ?
उ. कारण क्या? एक तो आदत पड़ गयी । और दूसरा, अभिमान मनुष्य को मारता है । मन में होता है, "मैं सच नहीं बोलता और यह फिर काहे का सत्यवादी बनता है | हम अनीति चलाते हैं और इसे नीति-नीति कूटनी है ?” ऐसा लगता है जैसा इसके अपने अन्तस्तल में ही कोई इसे बुरा कह रहा है; तो सहा नहीं जाता अतः जैसे इसकी इच्छा है कि दुनिया में सच वच, नीति वीति कुछ न हो, ताकि दूसरे भी मेरी अपनी पंक्ति में बने रहें । अहंत्व दूसरों की उच्चता को नहीं सह सकता। खुद को नीचा देखना पड़े ऐसी स्थिति अभिमान कैसे सहने देगा ? स्वदोष पर प्रेम होने से दूसरों के गुण पर खार-द्वेष होता है :
स्वयं के विषय में यह बहुत सोचने की बात है कि हम बहुत खानेवाले (पेटू) हों तो दूसरे के तप त्याग देखकर हमें जलन होती न ? यदि हमें अपने पेटूपन पर उद्वेग होता हो तो त्यागी - तपस्वी को देखकर जलन नहीं हो सकती, आनन्द होगा कि 'वाह! यह कैसा भाग्यशाली है कि सुन्दर त्याग करता है, तप करता है। मैं अभागा खान-पान की मौज में पड़ा हूँ ।' इस तरह अपने दोषों को देखकर दिल जलता हो, दोष बुरे लगते हों और गुण अच्छे लगते हों तो गुणवान् को देखकर मात्सर्य नहीं होगा, अनुमोदना होगी ।
इससे सूचित होता है कि दोष रहते हुए भी यदि गुणवान् पर जहर नहीं बरसता लेकिन दोष से ग्लानि होती है तो समझ लो कि आत्मदशा इतनी सुधरी कही जाएगी । मोक्ष में जाने के अन्तिम पुद्गल - परावर्त काल में अनादि के सहजबल का ह्रास हो जाता है, सो उसका एक लक्षण यह है कि 'अद्वेषो गुणवत्सु' गुणवान् पर द्वेष न हो। ऐसा कब हो सकता है ।
दो बातें है - (१) एक तो स्वयं गुणवान् हैं और दूसरा गुणवान नजर आनेपर
२०८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org