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________________ (३) मात्सर्य कुमानव (दुर्जन) का तीसरा लक्षण है 'गुण समृद्ध पुरूष के प्रति मात्सर्य ।' मात्सर्य भी मानव को कुमानव सिद्ध करता है । मात्सर्य ईर्ष्या से मिलता जुलता दोष है । परन्तु अन्तर यह है कि ईर्ष्या में असहिष्णुता का जोर है जब कि मात्सर्य में हृदय के भीतर जहर बरसता है। कुमानव अपने आप में दोषों को भरे रखना चाहता है अतः बेचारा औरों के गुण कहाँ से सह सकेगा ? उसे तो उस गुणवान् के प्रति जहर ही बरसेगा | कृपण मनुष्य क्या कभी दानवीर को मीठी निगाह से देख सकता है ? कृपण (कंजूस) की जलन (संताप ) मम्मण जैसा कोई व्यक्ति एक दिन घर आकर दरिद्र की तरह निराश होकर बैठ गया। उसकी पत्नीने पूछा, 'ऐसे उदास क्यों हो ? क्या हुआ ? चलो खाना खा लो ।” वह बोला, 'आज खाना नहीं भाएगा ।' स्त्री ने पूछा 'लेकिन बात क्या है? तबीयत ठीक नहीं है ? - बिगड़ गयी है ? ' कृपण ने कहा, ' तबीयत बिगड़े नहीं तो और क्या हो ? 'क्यों, काहे से ? क्या हुआ कंजूस बोला - 'देखो न वह एक धनिक कुछ ज्यादह कमा गया होगा तो रूपये उड़ाने लगा है । पठ्ठा लोगों को कैसे मुफ्त दानमें यों ही पैसे दे देता है । हाय मां अपने से यह कैसे देखा जाय ? यह देख कर मेरी तो तबीयत ही बिगड़ गयी, खाने की रूचि ही उड़ गयी है ।" यह क्या है ? गुणवान् के गुण पर मात्सर्य, खार, जहर बरसता है । उसे इससे कुछ लेना-देना है? कुछ नहीं! पैसे लेनेवाले दूसरे, देनेवाला भी दूसरा । देनेवाला खुद कमा कर देने लगा है, इसमें इस जलनेवाले का क्या गया ? लेकिन कहावत है न कि 'खर्चनेवाले का खर्च होता है और नाई पेट कूटता है ।' दावत देनेवाला उदार हो और चार के स्थान पर चौदह वानगी बनवाए, लोग चाव से खाते हों और खिलानेवाले की प्रशंसा करते हो लेकिन जलनेवाले (मत्सरी) व्यक्ति से यह सहा नहीं जाता । उसके मन में ज़हर बरसता रहता है । वह बकवास करता है - " देख लिया बड़ा उदार ! उडाऊ है उडाऊ दावत में क्या दो चार चीजों से २०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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