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हैं। उसे बिगडने से रोकना हो तो रोक सकते है। बाहर वाले को दोष देने के बजाय स्वयं को पहचानना आवश्यक है |
प्रभु महावीर को देख कर संगम देवता में बिगाड हुआ, वह बिगाड क्या महावीर प्रभु के कारण हुआ? नहीं, वह तो देवता की आत्मदशा ही निकृष्ट थी और उसे इस निकृष्टता की कोई फिक्र नहीं थी। इसलिए वह बिगडा और उसने भगवान पर जुल्मों की वर्षा की । यदि उसके बिगडने में भगवान को कारणरूप कहें तो इस का यह अर्थ हुआ कि दुनिया में सज्जन लोग दुर्जनों को बिगाड़ते है क्योंकि उनकी सज्जनता का निमित्त पाकर दुर्जन लोग द्वेष करते हैं, ईर्ष्या, असूया करते हैं, अनाड़ीपन करते हैं, लेकिन ऐसा थोडे ही कहा जा सकता है । दुर्जन बिगडते हैं सो तो अपनी बुरी आत्मदशा की वजह से बिगडते है, उसमें सज्जनों का कोई कसूर नहीं माना जा सकता। अतएव ध्यान रखिये कि महावीर प्रभु अनार्य देश में विचरे और वहाँ अनार्य प्रभु पर बिगडे उसमें उन्हें प्रभुने बिगाड़े ऐसा नहीं कह सकते, प्रभु के कसूर से बिगडे ऐसा नहीं कह सकते ।
बस इसी तरह अपने आपके विषय में सोचना चाहिए कि जगत तो बहुत अच्छा है लेकिन हमारी आत्मदशा बुरी है इसलिए हम बिगडते हैं.
हवा (मौसम) में फेरफार होने पर क्या सब लोग बीमार पड़ते है ? नहीं जिनके शरीर कमजोर हों, जो ऐसे वक्त पर चालू आहार पूरा लेते हों अथवा भारी (गरिष्ठ) वस्तुएँ खाते हों उन पर हवा का बदलाव असर कर जाता है | तात्पर्य, मूलतः - मुख्यतया अपनी स्थिति ही बिगाड (विकार) के लिए जिम्मेदार है।
प्र० तो निमित्त क्या कारण नहीं है ?
उ० कारण भले हो, परन्तु मनुष्य यदि बचना चाहे तो किस चीज पर नजर रखने से बचा जाता है ? यह सोचिये। यदि अकेले निमित्त को ही दोष देता रहेगा
और अपनी स्थिति नहीं सुधारेगा तो वह निमित्त के बिना भी बिगडेगा। खराब स्थिति से तात्पर्य खराब पेट (ओझरी) और पेटू स्वभाव के दुर्गुण के कारण ही वह बिगडता है | फिर हवा में फेरफार न होनेपर भी तो भी खा खा कर तबीयत बिगाडेगा | अतः निमित्त के कारण होने का इनकार नहीं है, इसी लिए तो बुरे निमित्तो से दूर ही रहने को कहा गया है परन्तु अपनी खराबी मुख्य कारण है, यह विचार प्रथम होना चाहिए | इसीलिए भूल में यह खराबी होने से तुच्छ निमित्तों से भडकना है। आत्मदशा के लिए भी यही बात है कि अपनी आत्मदशा की खराबी अच्छी तरह ध्यान में रहनी चाहिए। बडा दोषारोपण उसी पर होना चाहिए कि 'दुनिया बुरी नहीं है मैं ही खुद बुरा हुँ इसलिए बिगडता हूँ खराब बनता हूँ। निःसन्देह
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