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________________ तपजप अनुष्ठान कर के भी आत्मदशा को सुधारते रहने का कार्य करना है। इन सब निमित्तों में विचारसरणी ऐसी चलती रहनी चाहिए जो हमारी अन्तर्दशा को निर्मल बनाती रहे । फिर क्या धर्म-प्रवृत्ति के समय और क्या बाहर - विचारसरणी एवं वाणी अच्छी बनाये रखने की सावधानी (जागृति) और पुरूषार्थ जारी रहते हों तो परिणामतः बुरी आत्मदशा भी स्वभावतः अच्छी होती जाय । आत्म-दशा सुधारना अर्थात् क्या? (१) पहले नंबर में यह कि पाप और दोष जहर जैसे लगें। हृदय में इन पापों और दोषों की खुशी नहीं बैचैनी हो; निश्चिंतता नहीं भय हो। यह वस्तु विवेक के घर की है। (विवेक से आती है) विवेक आया कि 'पापों का त्याग अच्छा, पाप बुरे है, पाप आत्मा की शोभा नहीं, सुन्दरता नहीं, बदनामी है, खराबी है।' ऐसी पहचान हो गयी समझिये। फिर फिलहाल शायद तुरन्त पापों को छोड देना न हो सके लेकिन उन से घृणा तो होनी ही चाहिए । दिल में उनपर अभाव (नापसंदगी) तो करना ही रहा न ? (२) दूसरी यह आवश्यक है कि पापों की प्रवृत्ति रूक जाय : पापों की वृत्ति कब रुके :आत्म-दशा के सुधार में यह बहुत आवश्यक है, क्यों कि हिंसापूर्ण आरंभ समारंभ, विषय परिग्रह . आदि पाप तथा काम-क्रोध- लोभ- मद मायादि दोष ही यदि भूल में बुरे न मालूम हों, अन्तर में उनके प्रति अभाव अरुचि न हो और उसके बदले वे यदि स्पष्टतः करणीय लगें, अच्छे लगें, यदि उनमें कुछ भी ऐतराज न हो तब तो बेतहाशा उन्हें अपनाने की, करने की वृत्ति कैसे रूकेगी ? उसके पीछे वैर, विरोध, ईर्ष्या, स्वार्थान्धता आदि का पूर्णतः आचरण करने की कनिष्ठ वृत्ति कैसे छूटेगी ? ऐसी निम्न आत्मदशा तो हम अनन्त काल से रखते ही आये हैं, और वर्तमान समय में अनार्य - म्लेच्छ लोग चमार - भंगी ( मेहतर ) तथा अधम लोग और पशु-पक्षी भी पापों पर प्रेम की अधम आत्मदशा रखते दिखाई देते हैं, सो हम भी वही रखें तो इस सुन्दर धर्म-शासन के साथ प्राप्त हुए उच्च मानव-अवतार की विशेषता क्या ? कौनसी आत्मदशा सुधारी ? तब क्या आप यह समझते है कि धर्म भी बाहर से क्रिया के रूप में कर लिया और भीतर से आत्मदशा नहीं सुधारी तो भी कल्याण हो जाएगा? इस गलत फहमी में न रहना। Jain Education International १९४ For Private & Personal Use Only - - www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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