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________________ ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की आँखें एक ब्राह्मण ने षडयंत्र करके फुडवा दी। इस तरह स्वयं चक्रवर्ती बेगुनाह गिना जाय तो भी वह ऐसे उपद्रव में लगा कि 'अब मैं दुनिया के सारे ब्राह्मणों की आँखे फुडवा दूँ ।' और प्रिय पटरानी कुरूमति की आसक्ति में डूबा तो मरकर सातवीं नरक में गया। यहाँ के किस बहाने ने उसकी रक्षा की ? वासुदेवों को ठकुराई तथा वैभव - विलास प्राप्त होता है । उन्हें कोई विषय राग, विषय भोग और कषायों को कम करने का उपदेश दे तो उनका मन बचाव करता है कि मेरी गुंजाइश कहाँ है? अपनी ताकत नहीं है । परन्तु मरने के बाद क्या ? बचाव होता है? नहीं, वे तो मर कर नरक को सीधाते ही हैं। प्र० किन्तु वे तो नियाणा ( निदान) करके आये होते हैं इसलिए नरक में जाते है न? उ० तो क्या पूर्व भव में किया हुआ नियाणा उसने वहीं पर यहाँ से नरक में जाने का आयुष्य बँधवाया था ? अथवा वह यहाँ बँधवाने आता है ? कर्म के बंध का आधार तो कर्म बँधने के समय आत्मा के भाव कैसे हैं, परिणाम अध्यवसाय कैसे हैं, उस पर है । नियाणे का भाव तो पूर्व भव में था, परन्तु अब यहाँ वासुदेव वाले भव में नरकायु- कर्म बाँधते समय क्या है ? कहिये, उस नियाणे के कारण दृढ किये गये विषय कषाय की जोरदार परिणति के परिणाम स्वरुप यहाँ भी वही परिणति रही और इसीलिए निरंकुश बनकर विषय भोग में आसक्त रहे और अंधे होकर कषाय सेवन में आकंठ मग्न रहे। फलतः बिगडे हुए भाव से नरक के कर्म पैदा किये, तो अब अपने जीवन में सोचिये कि विषय-भोग में आसक्ति नहीं है न ? कषायों को रोकना जारी है न ? या अब भी विषय कषाय में डूबे रहना जारी है ? लक्ष्मणजी वासुदेव थे | क्या वे गुणवान नहीं थे ? फिर भी विषय कषाय में उनकी अनुरक्ति कैसी थी कि जो उन्हें चौथी नरक में ले गयी । रावण सम्यग्दृष्टि था, अरिहंत-प्रभु का भक्त था। अवसर आने पर बडे ठाठ से पूजा भक्ति करता था। परन्तु काम-संज्ञा, मान- कषाय वगैरह उसे चौथी नरक में घसीट गये ! विषयकषायों की कैसी भयानकता ? Jain Education International १७९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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