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पर यहाँ गाढा राग हो उसका स्वप्न भी अब परलोक में न देखने दूँ ।' मानों ऐसा कहती हुई इष्ट से एकदम दूर रखकर अत्यन्त भयानक अनिष्ट में पटक देती है | अतएव यहाँ पर 'ठंड लगी' 'गर्मी लगी' आदि नजाकत बहुत करने योग्य नहीं
नजाकत से बचने उपाय :
इस जगत में स्पर्शनेन्द्रिय के ये विषय तो विद्यमान रहेंगे ; उनके प्रति रतिअरति, हर्ष-उद्वेग से बचने के लिए जो अनिष्ट आवे, उसे शान्तिपूर्वक निभा लेना और मन को दूसरी दिशा में मोडना चाहिए | बनिया दो नंबर का बही खाता लिखनेघर के भीतरी कमरे में बैठ कर हिसाब लिखने में गर्मी-पसीना कैसा भूल जाता है । चार घंटे बाद लिख चुकने के पश्चात उसे लगता है कि 'हाय ! बडी गर्मी पड रही है । 'अरे भाई ! पर चार घंटे गर्मी कहाँ चली गयी थी ? परन्तु हिसाब के ध्यान में पता ही किसे लगा कि कैसी गर्मी पड़ रही है ? बस, इसी तरह हम अपने मन को किसी रुचिकर तत्त्व, भावना, तीर्थयात्रा-स्मरण, किसी चरित्र कथा या बहुसंख्य नवकार-जाप के कार्य में रोक रखें अथवा नरक के दुःख या महापुरुषों के सहर्ष भोगे हुए घोर उपसर्गों का विचार करे तो यहाँ की ठंड-गर्मी, जो कि नरक की तुलना में किसी बिसात में नहीं, की ओर मन नहीं जाएगा । | असिपत्रवन की यातनाः-]
महर्षि धर्मनन्दन आचार्य महाराज राजा पुरंदरदत्त से कहते है- हे नरोत्तम! देखो कि वे नारक जीव अग्नि के समान रेत में भुनने के बाद ज्यों ही सामने दिखाई देनेवाले असिपत्र वन में ठंडक पाने दौडते हैं त्यों ही पेडपर से खंजर, कुल्हाडी, तलवार के धारदार फलक और चक्र, भाला, शूली की तीक्ष्ण नोंक (अनी) जैसे पत्ते और फल धडाधड गिरने लगते हैं, इन जीवों के सिर और शरीर पर गिरने से सिर फटते अंग कटते है और वे जीव चीखते चिल्लाते भागते हैं परन्तु वनमें से एकदम कैसे बाहर निकल सकें ? दौड़ते जाते है और उसी समय ऊपर से धड़ाधड शस्त्रों के समान पत्ते और फल शरीर पर गिरते जाते हैं। 'छेदन-भेदन का पार नहीं ! यहाँ मानव-भव में किसी की कुहती लगने मात्र से जो भड़क उठता है क्या उसे यह पता भी है कि 'वहाँ उस घोर पीड़ा में क्या होगा ? | महावायु के तूफान :
ये जीव ज्यों ही बड़ी मुश्किल से असिपत्र वन में से बाहर निकलते हैं और खुले मैदान में 'आह ! बच गये' कहते हुए आते हैं त्यों ही उनके तीव्र अशुभ कर्म
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