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की भरपेट निंदा करता था, बडे आरंभ-समारंभ, झुठ-अनिति और संरक्षण के रौद्र ध्यान में चढता था तब तुझे पाप का विचार करने की फुरसत या श्रद्धा नहीं थी? और अब पाप पुछता है ? अरे पापी ! मूर्ख होते हुए भी स्वयं को समझदार मानकर राग-द्वेष-काम-क्रोध-लोभ आदि में डूबे हुए पामरों को देव-भगवान्-परमात्मा मानकर जोर से बकवास करता था कि — इनके सिवा और कोई वीतराग सर्वज्ञ देव है ही कौन ? यज्ञादि हिंसाएँ बतानेवाले वेदों को छोड़ दूसरे कौन से शास्त्र प्रमाणिक हैं ।' और इस तरह बक कर पवित्र संयमशील मुनियों की निंदा करता था । अथवा नास्तिक बन कर 'देव नहीं हैं, स्वर्ग-नरक नहीं हैं, धर्म जैसी कोई चीज नहीं हैं; बस जानवरों को मारो, भैंसो को खड़े चीरों, मांस खाओ, अंडे खाओ, शराब पियो, रंडियाँ नचाओ, वेश्या-विधवा-कुमारिका-सधवा (सुहागिन) चाहे जिसके साथ खेल खेलो' आदि अंट-शंट बकवास करता था । तब पाप कि चिंता नहीं थी ? और अब पूछता है-कि मैंने क्या पाप किया ? गुरु कहते कि 'पाप नहीं करना चाहिए' तब रोब के साथ उनका विरोध और उपहास करता था और अब हमारे आगे दीन बन कर आजीजी करता है ? भयानक बाज़ :
ऐसा कहते हुए वे दुष्ट परमाधामी देव उसके अंग अंग के टुकडे टुकडे कर के आकाश में फेंकते हैं, उन्हें चील जैसे पक्षी पकड़ कर तोड़ तोड़ कर चबाते हैं । नरक के जीव के आत्म-प्रदेश उन अगों में भी फैले हुए होते हैं, फलतः पक्षी द्वारा कौंचे, फाडे और चबाये जाने में भयानक पीडा का अनुभव होता है । और "हाय! हाय !" ऐसा करुण विलाप करता है फिर भी उन देवों को दया कहाँ ? वे पुनः अंगो के संध जाने से अखंड शरीर बनने पर अग्नि में डाल कर तपाते हैं । | नरक की भूख-प्यास :
वहाँ वे नारकी प्राणी बेचारे चीखते चिल्लाते हैं कि - 'हे स्वामी ! हम जल गये, हमें प्यास लगी है,' उस वक्त परमाधामी कहते हैं -'अरे ! पानी लाओ पानी।' ऐसा कहते ही उन जीवों के मुँह फैल जाते हैं, उन में खूब गर्म किये हुए जलते हए तांबे-सीसे के रस उँडेलते हैं ! तब वे भयंकर दाह के मारे चीख उठते हैं कि 'अरे! बस, बस, ! स्वामी ! हमारी प्यास बुझ गयी, माफ कीजिये ।' परन्तु ये निर्दय देव तो मुँह में संडसी डाल कर मुँह चौडा करते हैं और उसमें गले तक नली उतार कर उसमें आग जैसा सीसे का रस उँडेलना जारी रखते हैं। और उसके बाद फिर 'लो ! भूख लगी होगी, तुम्हें यह मांस-रस (शोरबा) बहुत प्रिय था, लो, खाने को देते हैं ' ऐसा कह कर उन नारकों के गले में संडसी लगाये रखकर खूब तपा हुआ
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