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________________ उदाहरणतया - काउस्सग्ग ध्यान में खड़े हैं। परन्तु उसमें शरीर पर मक्खी या मच्छर बैठ गया, अब यदि उसे उड़ाने की इच्छा पैदा हुई तो वह ध्यान स्खलित होगा, उसमें चित्त सतत एक तार नहीं चलेगा । उस इच्छा को तो दबाना ही पड़ेगा - ऐसे कि, यह ध्यान पूर्ण होने तक तो मुझे उसको उड़ाना ही नहीं हैं ! मैं यह चाहता भी नहीं कि वह उड़े।' तो चित्त उस ओर नहीं जाएगा। उसी तरह - मंदिर में प्रभुदर्शन को गये, भावभक्ति करते हो । इतने में घड़ी पर निगाह पड़ी, और इच्छा हुई कि 'अब शीघ्र ही घर पहुँच कर धंधे के काम पर निकल पड़ना है, नहीं तो देर हो जाएगी।' तो बस, दाल में बड़ी गिर पड़ी। चित्त चंचल हो गया । अब वह कुछ भावभक्ति में स्थिर नहीं रहेगा। हाँ, मन को वहाँ दृढ कर के ऐसे इच्छा को रोका जाय कि 'मुझे धंधे की कोई जल्दी नहीं है' तो मन विह्वल न बने । | साधना शुद्ध कैसे बने ? इसीलिए तो 'योगद्रष्टि समुच्चय' नामक शास्त्र मे विशुद्ध योग बीज की साधना के लिए संज्ञा को रोकना और निराशंस भाव को जरूरी गिना गया है । अर्थात् उसका कथन है कि कमसे कम जब तक साधना करते हो तब तक तो आहार संज्ञा, विषय संज्ञा आदि संज्ञाओं को रोको; उन्हें उठने ही न दो। साथ ही निराशंसभाव के लिए इस धर्म साधना के फलस्वरूप किसी माल - मान या वाह वाही आदि की इच्छा न करो । क्यों भला? इसीलिए कि अगर आहार संज्ञा से खाने की, या विषय संज्ञा से अच्छा देखने सुनने आदि की इच्छा हुई तो उसमें खिचने वाला मन साधना से चलित हो जाएगा। साधना में स्थिर कहाँ से रह सकेगा? इस तरह तुच्छ भौतिक फल की अभिलाषा कायम रहती हो तो भी चित्त उस में जाया करेगा, इस कारण भी वह साधना में स्थिर नहीं रह सकता। अतः ऐसे चंचल चित्त से साधना शुद्ध नहीं बन सकती, मैली कुचली साधना होगी; और उससे क्या दारिद्य दूर होगा ? बस, चाहे शुद्ध साधना के लिए कहिये या चित्त की स्थिरता के लिए कहिये उपाय यह है कि इच्छाओं पर नियंत्रण रखो । यदि छोटी बडी इच्छाओं की खुजली उठा करेगी तो वह चित्त को शांत नहीं रहने देगी, अच्छी से अच्छी धर्मसाधना को भी बिगाड देगी। भले ही श्री सिद्धगिरि पर प्रभु आदीश्वर दादा की पूजा करने खड़े हो या उनकी चैत्यवंदन स्तुति आदि भाव-भक्ति शुरू की हो ९४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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