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९. कुवलयचन्द्र का अपहरण
बात यह थी कि राजकुमार कुवलयचंद्र नगर में होकर घुडसवारी पर निकला है, तब कुछ स्त्रियाँ अपना मान खो बैठती है, कामवश बनकर मोह की चेष्टाएँ करती है, चक्षु - इंद्रिय का मनोहर विषय मिलने से सत्त्वहीन बनती हैं। सवारी आगे निकल गयी और सब नगर के बाहर आकर रूके। घोड़ों की परख करनी है कि कैसे पानीदार घोडे हैं, अतः नगर के बाहर आकर घोड़ों को दौडते छोड देते है । इनमें राजा एवं कुमार ने भी अपने घोडे दौडते छोड दिये ।
कुमार का घोडा आकाश में
बस, इतनी ही देर थी, ऐसी एक महान् आश्चर्य की बात हुई कि कुमार का घोडा आगे बढ़ा तो सही पर जमीन पर नही किन्तु तत्काल आकाश में ही उड़ा। आकाश मानों जमीन हो, वह उस पर चारों पैरों से चौकड़ी भरता इतने वेग से
कि थोडी सी देर में दूर आकाश में अदृश्य हो गया। राजा तथा दुसरे लोग तो आँखे फाडफाड कर देखते ही रह गये कि 'यह क्या ? घोडा, और आकाश में दौड़े ? उसका पीछा भी कैसे किया जाय ? क्यो कि उस की गति, उसका वेग असाधारण था । अभी तो ये लोग जरा विचार करें कि क्या करना चाहिए ? उतने में तो उसका दिखाई देना बन्द हो गया ।
मनुष्य का सोचा हुआ क्या होता है ? और बिना सोचा हुआ क्या रोका जा सकता है ? राजा के मन में ऐसे हो रहा था कि बारह वर्ष बाद पढ़ लिखकर तैयार होकर अभी ही देखने को मिले सुपुत्र की घुडसवारी की सुन्दर कला देखने को मिलेगी, और उसके बाद लौटने पर उसके साथ प्रेमगोष्टि, प्रीतिभोजन आदि का आनन्द मिलेगा। परन्तु ऐसा कुछ सोचा हुआ कहाँ पार पडा ? उसके बदले यह अकल्प्य आपत्ति आ खडी हुई कि प्राणप्रिय कुमार को विचित्र घोडा आकाश में कहीं ऊँचे दूर ही दूर उड़ा ले गया ।
जीव की जबरदस्त मूढता
मनुष्य का सोचा हुआ बहुत सा घटित नही होता और अनपेक्षित हो जाता है, उसे चला लेते हैं, परन्तु उसे इससे कभी कंटाला नहीं आता यह कैसा आश्चर्य है ? कैसी भारी मूढता | विचार नहीं आता कि 'हाय ! यह कैसी दुर्दशा, कैसी
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