SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऐक भलामण वर्धमानतपोनिधि पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजयभुवनभानुसूरीश्वरजी महाराज ने अपनी आगवी तार्किक शक्ति को शास्त्र से परिकर्मित कर के अनेक विध पदार्थो के अर्क स्वरुप से सकल श्री संघ समक्ष रखकर जिनशासन की सुंदर सेवा की हैं । चतुर्विध श्री संघ का १ रोजिंदा पर बहुमुल्य अनुष्ठान । आवश्यक कार्य - प्रतिक्रमण ..... वह अनुष्ठान मात्र द्रव्य से अर्थात् तनसे वचनसे या मनसे समाप्त कर देना न होवे ... __ लेकिन इसमें आत्मा मिले ... क्रिया में प्राण समाये और क्रिया भावक्रिया बने ... आत्मा संतुष्ट होऐ इस लिए बरसो तक उसे मानसिक स्तर तक धुंटकर क्रिया में प्राण समाने के लिए प्रतिक्रमण के १-१ सूत्रो के चित्रो तैयार करवाकर उसकी समज देकर लोगो को भाव अनुष्ठान की ओर आकर्षित किया हैं। वह पुस्तक यानि की सचित्र प्रतिक्रमण सूत्र आलबम (हीन्दी एवं गुजराती दोनो भाषाओ में) अवश्य सबही जैन भाईओं ने घर में बसाकर उस पर नजर डालने जैसा .... एवं सबही पूज्य साधु साध्वीजी भगवंतो को भी एकबार ये पुस्तक अवश्य पढ़ने जैसा और जैन धर्म के मूलभूत पदार्थो को । बालभोग्य भाषा में सचित्र रुप में प्रगट करने वाला एक छोटासा लेकिन हरदम याद रखने जैसा पुस्तक यानिकी सचित्र तत्त्वज्ञान बालपोथी (हिन्दी एवं गुजराती में) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003226
Book TitleGandharwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy