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(१-अ) प्रथम प्रश्न के उत्तर में यह समझना है कि ऐसे अनेकानेक बाधक है जिनके कारण विद्यमान वस्तु भी हमें दिखाई न दे, फिर भी वह वस्तु हमें माननी तो पडती ही है। अपनी आंख अतिनैकट्य वश हमें दिखाई नहीं देती फिर भी क्या हम कहते है कि आँख नहीं है ? न देख सकने में ऐसे अनेक बाधक है यह आगे सोचेंगे, किन्तु -
अद्रश्य कर्म से डरो :- अग्निभूति को भगवान द्वारा कथित ये वचन हमें भी विचारणीय है। वस्तु हम देख नहीं सकते, इतने ही से उसका निषेध कैसे किया जा सकता है ? आधुनिक युग में तार में विद्युत शक्ति, लोहचुम्बक में चुम्बक शक्ति, परमाणु आदि में अद्रश्य तत्त्व भी अवश्य माने जाते हैं तो आश्चर्य है कि जब शास्त्र की बात आती है या धर्म और तत्त्व की बात आती है तो 'कहां दीखती है ? कहां दीखती है ? दीखे तो बताओ' ऐसा कह कर उस पर अश्रद्धा की जाती है ! और उसे अस्वीकार किया जाता है। ऐसी अद्रश्य कर्मसत्ता की उपेक्षा कर उत्तम मानव भव अज्ञानतावश
अत्यल्पकालिक आयु में तुच्छ विकल्पों, मताग्रहों और विषय सुखों की खातिर भ्रष्ट किया जाता है और भावी अति दीर्घ काल के लिए भयंकर दुःख उत्पन्न किये जाते हैं; परन्त समझ लेना चाहिए कि ऐसे अनेकानेक कारण हैं कि जिनके जरिए वस्तु नहीं भी दीखती या जानने में नहीं भी आती, इससे उस वस्तु की सत्ता में अश्रद्धा करने का कारण नहीं होता । अश्रद्धा करने वाला पुरुष कर्मसत्ता को नहीं मानता हुआ भी इतना तो देखता ही है कि, - (१) अपनी इच्छा के विरूद्ध बहुत कुछ हो हा है, और (२) बहुत इच्छा होने पर भी तद्नुसार होता नहीं । अश्रद्धा करें, पर भी आयुष्य के हास और इच्छाओं की निष्फलता जो जारी है, उसमें तो कोई अन्तर नहीं पडता; तो क्यों कर्मतत्त्व पर श्रद्धा न की जाए ? क्यों भवभीरु , पवित्र संयमजीवन यापन करने वाले, सत्यवादी और एकान्त परमार्थ बुद्धि वाले शास्त्रकार जो लिखते हैं, जिस पर श्रद्धा करने के लिए यह दुर्लभ किंमती भव प्राप्त हुआ है, उस पर और उसे बताने वाले शास्त्रकारों पर श्रद्धा करके इस जीवन को धन्य न बनाया जाय ? श्रद्धा की जाएगी तो भविष्य में तदनुकूल पवित्र संयम और त्याग तपस्यादि से जीवन को अलंकृत बनाया जायेगा; परन्तु यदि मूल में श्रद्धा ही नहीं तो खान-पान, ऐशआराम, गीत, नृत्य, भोग विलास, आदि पूर्ण पाशविक वृत्ति वाला जीव कीड़े मकोड़ों मे तो क्या, हाथी-हथिनी, कोयल, मोर, गधे आदि पशुओं के अवतार में तो मिल ही जाता है । अतः ज्ञानियों के वचन पर श्रद्धा करनी चाहिये । अस्तु ।
अब किन कारणों से वस्तु होते हुए भी ज्ञान में नहीं आती ? इस पर विचार करें । (१) आँख के बहुत नजदीक हो तो न दीखे; जैसे :- आँख में लगायी हुई
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