SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रत्यक्ष प्रमाण से आत्मा सिद्ध नहीं होती :- क्योंकि प्रत्यक्ष करने के लिए पांच ईन्द्रियाँ हैं, इनमें से एक भी आत्मा का अनुभव नहीं कर पाती । आत्मा घड़े की भाँति दृष्टिगम्य नहीं है, शब्द की भाँति कान से श्रव्य नहीं है, तथा रस की भाँति जीभ इसे चख भी नहीं सकती । इस प्रकार आत्मा देखी या जानी नहीं जा सकती । प्रश्न- जीव प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देता फिर इसे कैसे मानें? यद्यपि परमाणु स्वतन्त्र रूप से प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देते, फिर भी इनके कार्य घडे के रूप में दिखाई देते हैं, इसलिए इनका तो निषेध नहीं किया जा सकता, परन्तु आत्मा तो स्वतंत्र तो क्या, पर किसी कार्यरूप में भी दृष्टिगोचर नहीं होती, तब इसका अस्तित्व कैसे मान्य हो ? उत्तर - जगत में प्रत्यक्ष नहीं होते हुए भी किसी वस्तु की भाँति आत्मा अनुमान से मानी जाय, जैसे-झौंपड़ी के अन्दर रही हुई अग्नि बाहर प्रत्यक्ष नहीं होने पर भी छप्पर से पार निकलते हुए धुएं को देखकर अनुमान से मानी जाती है, इस प्रकार शास्त्रादि प्रमाणों से आत्मा भी मान्य है । ऐसा अगर आप अनुमान प्रमाण दें, किन्तु अनुमान प्रमाण से आत्मा का ज्ञान नहीं होता । अनुमान तीन प्रकार से होता है : (१) कारण- कार्य अनुमान जैसे चींटी के पैर, धूल में चकवी की क्रीड़ा आदि लक्षणयुक्त घनघोर काले बादल वर्षा के सूचक हैं । इन पर कृषक वर्षा रुपी कार्य का अनुमान करते हैं । इसी प्रकार सुलगते हुए चूल्हे पर उबलते हुए पानी में डाले हुए चावल को देखकर भात तैयार होने का अनुमान होता है। युद्ध भूमि पर आमने सामने दो शत्रुओं की सेनाएँ देखकर युद्ध का अनुमान होता है, और पश्चिम की ओर सूर्य को अधिक ढला हुआ देखकर अस्त होने की तैयारी का अनुमान होता है (२) कार्य-कारण अनुमान :- जैसे धुंआ अग्नि से उत्पन्न होने वाला कार्य है । अग्नि इसका कारण है जिससे कार्य धुंआ देखकर कारण - अग्नि का अनुमान होता है । इसी प्रकार पुत्र को देख कर कारणभूत पिता का अनुमान होता है । I · (३) सामन्यतो दृष्ट अनुमान :- पहले दो अनुमान 'पूर्ववत्' व 'शेषवत्' हुए । अब सामन्यतो दृष्टं जहाँ दो वस्तुएँ एक दूसरी की कार्य कारण नहीं होती परन्तु साथ साथ रही हुई होती है; एक दूसरी में व्याप्त होती हैं, वहाँ एक को देख कर दूसरी का अनुमान होता है जैसे रस रूप (वर्ण) के साथ ही रहता है तो घास में पकने के लिए डाली हुई केरी का अंधेरे में मधुर मधु जैसा रस चख कर अनुमान होता है कि केरी पक गई होगी। इसी प्रकार कुत्ते के भौंकने आदि के आवाज से Jain Education International - * १० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003226
Book TitleGandharwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy