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________________ अनुवाद भी । पहले वि.सं. १९६३ में यशोविजय संस्कृत पाठशाला, महेसाणा द्वारा इसका अक्षरशः गुजराती अनुवाद प्रसिद्ध हुआ था । देवद्रव्य आदि धर्म द्रव्य की रक्षा - प्रबंध - सदुपयोग के विषय में बहुत कुछ जानना - समझना आवश्यक है । ऐसे द्रव्य के प्रबंधकोंविश्वस्तों के लिए विशेष गीतार्थ - संविग्न गुरुओं के पास से इसकी जानकारी प्राप्त करना आज के समय में अत्यंत आवश्यक है । प्रस्तुत हिन्दी भाषांतर प्रकाशन में आशीर्वाद प्रदाता सुविशाल गच्छाधिपति पू. आचार्यदेव श्री विजय जयघोषसूरीश्वरजी म.सा. को तथा संयमैकलक्षी पू. आचार्य श्री विजय जगच्चंद्रसूरीश्वरजी म. को भाव-भक्ति-श्रद्धा सह वंदना करता हूँ । तो मुझे रत्नत्रयी की साधना में अनेक प्रकार से सहायरूप बने हुवे और प्रसन्नता से प्रस्तावना लिखने का सौजन्यवाले मेरे सहोदर तथा गुरुबंधु पू.पं. श्री भुवनसुंदरविजयजी महाराज को मैं कैसे भूल सकता हूँ ? प्रस्तुत भावानुवाद में कोई भूल हुई हो तो त्रिविधे त्रिविधे क्षमायाचना करता हूँ । संविग्न गीतार्थ पूज्यो इस विषय में लिखकर बताने की कृपा करें । गुजराती भावानुवाद का अति सुंदर हिन्दी अनुवाद करनेवाले श्रीमती सुमित्रा प्रतापकुमार टोलिया (एम.ए. हिन्दी, संगीत विशारद) धन्यवाद के पात्र हैं । पुस्तक प्रकाशन का संपूर्ण सौजन्यप्रदाता ईर्ला - मुंबई निवासी नामना की कामनामुक्त सुश्रावक परिवार की श्रुतभक्ति को भावांजलि । वि.सं. २०६२, अषाढ सुद ६ मुंबई Jain Education International न्यायविशारद, श्री संघहितचिंतक, १०८ वर्धमान आयंबिल ओळी के समाराधक पू. आचार्यदेव श्री विजय भुवनभानु सूरीश्वरजी म. के शिष्य पं. गुणसुंदरविजयजी गणी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003225
Book TitleNabhakraj Charitra
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorGunsundarvijay
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devdravya, & Story
File Size3 MB
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