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________________ को प्रिय ऐसा नाभाक राजा का चरित्र किसके मन को प्रसन्नता अर्पण नहीं करेगा ? अवश्य करेगा । स्थल है जंबूद्वीप का भरतक्षेत्र । समय है श्री पार्श्वनाथ प्रभु तथा श्री नेमिनाथ प्रभु के बीच के आंतरा का अर्थात् मध्यकाल का । यहाँ क्षितिप्रतिष्ठित नामक नगर है । इस नगर में श्रीपति (विष्णु) अर्थात् लक्ष्मीवंत पुरुष, ब्रह्मा (ब्रह्मचर्यव्रतनिष्ठ नगरजन) जिष्णु (इंद्र) अर्थात् विजय प्राप्त करनेवाले पुरुष, श्रीद (कुबेर) अर्थात् दानवीर पुरूष बसते थे । केवल एक ही नागेन्द्र के मस्तक पर स्थित रत्न से सुशोभित भोगावती नामक नागकुमार देवों की नगरी, इस नगरी के, अपने सभी अंगो पर धारण किये हुए रत्नाभरणों से विभूषित, अनेक भोगविलास करनेवाले पुरुषों के द्वारा मानों तिरस्कृत हो कर रसातल में चली गई । सचमुच यह योग्य ही था । यहाँ इन्द्र के समान अत्यंत सुंदर रूपवाला, पाप-संताप से मुक्त नाभाक नामक राजा राज्य करता था । . एक दिन राजा आनंदपूर्वक राजसभा में बैठा था उस समय कोई सेठ वहाँ आया । उसने राजा को उपहार देकर विधिपूर्वक प्रणाम किया । राजा ने सेठ से पूछा - "तुम कौन हो ? कहाँ से आये हो ? कहाँ जा रहे हो ?" उस सेठ ने अत्यंत स्वस्थतापूर्वक उत्तर दिया, "राजन् ! सुनिये, मैं धनाढ्य नामक सेठ हूँ । श्री वसंतपुर नगर का निवासी हूँ । तीर्थाधिराज श्री शत्रुजयगिरि की यात्रा के लिए निकला हूँ और उस मार्ग पर जाते हुए यहाँ आया हूँ ।" राजा ने प्रश्न किया, "शत्रुजय क्या है ? उसकी यात्रा का शुभ फल क्या है ?" इस प्रश्न का उत्तर देते हुवे सेठ ने कहा, "सुनिये राजन् ! महान पुण्य के उदय से प्राप्त हो सके ऐसा, पूर्व के महापुरुषों ने इस तीर्थ के अद्भूत स्वभाव-प्रभाव का जो वर्णन किया है उसे मैं यहाँ कुछ बता रहा हूँ ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003225
Book TitleNabhakraj Charitra
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorGunsundarvijay
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devdravya, & Story
File Size3 MB
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