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________________ जैन साहित्य जैनों का प्राचीनतम साहित्य प्राकृत भाषा में है। भगवान महावीर के पावन उपदेशों को गणधरों ने सूत्र रूप में रचा जो द्वादशांगी के नाम से विश्रुत हुआ। उस के अंतर्गत ४५ आगम हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं - ग्यारहअंग-१) आचारांग,२) सूत्रकृतांग,३) स्थानांग,४)समवायांग, ५) भगवती, ६) ज्ञाताधर्मकथा, ७) उपासकदशांग, ८) अन्तकृतदशांग, ९) अनुत्तरोपपातिकदशा, १०) प्रश्नव्याकरण, ११) विपाकसूत्र। दसपयन्ना - १) आतुर प्रत्याख्यान, २) गच्छाचार, ३) गणिविद्या, ४) चतुःशरण, ५) चन्द्रवेध्यक, ६) तंदूलवैचारिक, ७) देवेन्द्रस्तव, ८) भक्तपरिज्ञा, ९) महाप्रत्याख्यान, १०) मरणसमाधि । बारह उपांग- १) औपपातिक, २) राजप्रश्नीय, ३) जीवाभिगम, ४) प्रज्ञापना, ५) जन्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ६) सूर्यप्रज्ञप्ति, ७) चन्द्रप्रज्ञप्ति, ८) निरयावलिया, ९) कप्पवडंसिया, १०) पुप्फिया, ११) पुप्फ चूलिया, १२) वण्हिदशा। छेद सूत्र - १) निशीथ, २) व्यवहार, ३) बृहत्कल्प, ४) दशाश्रुतस्कंध, ५) महानिशीथ, ६) पंचकल्प। मूल सूत्र - १) दशवैकालिक, २) उत्तराध्ययन, ३) अनुयोगद्वार, ४) नन्दीसूत्र । सम्यग्दर्शन सम्यक चारित्र 28 सम्यग् शान For private 8- Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003223
Book TitleEnjoy Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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