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जैन साधु के विशिष्ट नियम
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१) भयंकर गर्मी की ऋतु में प्यास लगने पर भी रात्रि में पानी नहीं पीते ।
२) वे काष्ट, लकड़ी, मिट्टी के पात्र ही उपयोग में लेते हैं। स्टील या अन्य धातु के बर्तन काम में नहीं लेते।
३) वे चार महीने तक, वर्षावास में एक स्थान पर स्थिर रहते हैं और शेष समय जिनाज्ञा अनुसार परिभ्रमण करते हैं।
४) जैन मुनि कुए, तालाब, नदी आदि का कच्चा पानी उपयोग में नहीं लेते, वे सिर्फ गरम पानी या विधि से बनाये हुए अचित्त (निर्जीव) पानी का ही उपयोग करते हैं ।
५) जैन मुनि वाहन का उपयोग नहीं करते। ६) जैन मुनि कैंची, उस्तरे आदि से बाल नहीं कटवाते। वे अपने हाथ से बाल निकालते हैं, जिसे जैन परिभाषा में लोच कहते हैं । ७) जैन मुनि जीवों की रक्षा के लिए रजोहरण एवं मुहपत्ति रखते हैं।
* 1999)
८) जैन मुनि गृहस्थों के घरों से निर्दोष भिक्षा लेते है, जिसे गोचरी अथवा मधुकरी कहते हैं ।
९) जैन मुनि का अपना कोई मठ नहीं होता ।
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