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प्रायश्चित्त से शुद्धि
हे गुरुदेव ! मैं अपने सभी अपराधों के लिए क्षमा चाहता हूँ... मेरे द्वारा जीवन के कर्तव्यों को पूरा करते हुए जो अपराध हुआ हो उससे निवृत्त होता हूँ... हे क्षमाशील ! मैंने दुष्ट मन से, दुर्वचन से, दुष्ट शारीरिक चेष्टाओं से, क्रोध, मान माया लोभ से, किसी भी काल में, किसी भी मिथ्या भावना से, धर्म मर्यादाओं का उल्लंघन करने वाली कोई भी आशातना हुई हो... आपकी तैंतीस आशातनाओं में से मैंने जो भी अशातना की हो तो मुझे क्षमा करें...
इस प्रकार मैंने जो भी अपराध किया हो उससे निवृत्त होता हूँ... अपने पापों की आलोचना करती हूँ... अपनी आत्मा के अपराधकारी रूप का सर्वथा त्याग करता हूँ...
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