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सत्य की आराधना
ए से कोहा वा लोहा वा भया वा हासा वा ।।
सत्य की आराधना भावों से प्राराम्भ होती है। जब सत्य मन में। स्थापित हो जाए तब वाणी से मुखरित होने पर सुशोभित होगा । यूँ भी अनेक बार क्रोध से, अहंकार से, कपट से, लालच से, ईर्ष्या से, मज़ाक से अथवा भय से सत्य के बदले असत्य की भाषा बोली जाती है...
कभी-कभी निन्दा और विकथा करते। हुए भी झूठ बोला जाता है... कभी कभी सत्य वचन ही कर्कशता से युक्त होकर किसी का रहस्य प्रकट करके किसी के दिल को दुखाते हैं। तो वह भी असत्य भाषा जैसा है... ऐसी वाणी से सत्य खण्डित होता है उसके लिए मुझे धिक्कार है...
वह दिन मेरा परम कल्याण का होगा जिस दिन मैं सर्वथा रूप से असत्य का त्याग करके सत्य में प्रवेश करूँगी। 42ain Education International
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