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त्याग में आनन्द है...he anty
{१ स्वयं त्यक्तास्त्वेते शमसुखमनन्तं विदर्भात।।
जीवन-सरिता के दो किनारे है - भोग और त्याग... जन्म-जन्म के हमारे संस्कार भोग से जुड़े हैं परन्तु त्याग करने में जो आनन्द है वह वस्तुओं को भोगने में नहीं है।
ज्ञानियों का कथन है - जिन वस्तुओं को अंतिम समय में विवशता से छोड़ना ही है तो उन्हें पहले ही अपनी समझ से छोड़ देने में बुद्धिम त्ता है... त्याग से बढ़कर न कोई शक्ति है और न ही कोई मस्ती... _त्याग ज्ञान का सहज परिणाम है । ऐसे त्याग में जो छूटता है वह निर्मूल्य है और जो पाया जाता है वह अमूल्य है।
प्रकृति में भी त्याग का महत्व है - वृक्ष ने सदा फल-फूल का त्याग किया है... नदी ने सदा जल का त्याग किया है... त्याग से ही जीवन में संतुलन पैदा होता है।
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