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दसरों के
प्रभाव से हम मत जियो... अपने स्वभाव से कम और दूसरों के प्रभाव से अधिक जीते हैं। यह हमारी बहुत बड़ी कमज़ोरी है। यदि किसी ने कह दिया कि तुम बहुत सुन्दर हो... तुम बड़े उदार हो... तुम बहुत बुद्धिमान हो.... तुम्हारा कण्ठ बड़ा मधुर है... तुम बड़े । लोकप्रिय हो... यह सुनकर मन बड़ा प्रसन्न हो । जाता है। इसके विपरीत कोई कह दे कि आप बड़े क्रोधी है, स्वार्थी है, चालबाज है, लालची है, ईर्ष्यालु है... यह सुनकर हम नाराज हो जाते है। हम दूसरों के कथन से प्रसन्न और नाराज होते रहते हैं। ऐसे में हमने स्वयं को गौण कर दिया और दूसरे को जीवन का केन्द्र मान लिया। इस प्रकार दूसरों से संचालित होकर हम - कितनी दूर चल पायेंगे? हमारी आत्मा अपना वास्तविक
स्वरूप जानती है। अतः आत्मसाक्षी से धर्म की प्रवृत्ति में
मग्न होना चाहिये।
१५ अप्पा जाणइ अप्पा जहाँ?ओ अय्पसक्खिओ धम्मो ।
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