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जग में ऐसे रहना... जिस संसार में हम रहते हैं यह बड़ा विचित्र है। विचित्रता यह है कि जो हम चाहते हैं वह होता नहीं और जो होता है वह भाता नहीं और जो भाता है वह टिकता नहीं फिर इस जग में कैसे रहना है उसका चिन्तन जरूरी करना है...
यह जग है काँटों की बाड़ी, देखी देखी पग धरना. 'आँखों देखिबा कानों सुनिबा, मुख से कुछ न कहना... ___ कहा भी है - यहाँ नमक है हर एक के पास में अतः जख्म अपने दिल के सभी को बताना अच्छा नहीं होता। जो भी बोलो मीठा बोलो... मीठा ऐसा भी नहीं हो जो कपटपूर्वक या चापलूसी से बोला गया हो... मन में कोमलता...। स्वभाव में मिठास... व्यवहार में विनम्रता और सम्बन्धों में स्निग्धता रखते हुए इस जग में रहना।
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