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कषाय-निग्रह
आत्मा को मलिन बनाने वाला तत्त्व कषाय है। क्रोध, मान, माया और लोभ ऐसे विकार हैं जो हमारी आत्मा को विकलांग बना रहे हैं।
कहते हैं क्रोधी व्यक्ति अन्धा होता है उसे कुछ सूझता नहीं। मानी व्यक्ति किसी की कुछ सुनता नहीं । मायावी व्यक्ति की जुबान का कोई भरोसा नहीं होता और लोभी की तो नाक ही कट जाती है। अर्थात् क्रोध ने हमारी आँखे छीन ली क्योकि उसके आते ही मनुष्य अंधा हो जाता है। मान ने मनुष्य के कान छीन लिए, माया ने हमारी जिह्वा के अर्थ बदल दिए और लोभ ने तो नाक ही कटवा दी।
जरा कल्पना करके देखिए मनुष्य के उस रूप की... जिसकी न आँख हो... न कान हो... न जिह्वा हो... नाक भी कटी हुई हो... | काषायिक परिणति में जीने वाले मनुष्य का आन्तरिक व्यक्तित्व ऐसा ही विकलांग होता है। अतः भगवान कहते हैं अपने आन्तरिक व्यक्तित्व को यदि सँवारना चाहते हो तो कषायों का निग्रह करो।
चन्तारि एए कसिणा कसाया ।
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