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ज्ञान की रोशनी में मेरा जीवन-पथ आलोकित हो... ज्ञान को रोशनी से मार्ग के काँटे दृष्टिगोचर हो... मुझे अब भीतर जाना है। भीतर में जो आत्मतत्त्व है उसको देखना है। आत्मा की स्वभाव-दशा, विभाव दशा दोनों अवस्थाओं का सम्यग्दर्शन करना है... विभाव दशा से मुक्त होना है और स्वभाव दशा में स्थिर होना है।
मुझे ऐसी ज्ञान की रोशनी चाहिए जो मुझे मेरी मंजिल तक साथ देती रहे... जिससे मैं सहजता से प्रतिकूलता का स्वीकार और दुःखों को स्वागत कर सकूँ... स्वस्थ मन से, निराकुल चित्त से, मैत्री पूर्ण हृदय से समाधान खोज सकूँ... | _ज्ञान के अभाव में मैंने पर द्रव्यों को अपना द्रव्य मानने की भूल की है... पर भावों को अपने भाव मानने की भूल की है। ज्ञान ने मेरे जीवन को अमृतमय बनाया... मेरे हृदय-भवन में उजाला किया... मुझे यह बोध कराया कि मैं एक विशुद्ध आत्म-द्रव्य हूँ।
ज्ञान
को रोशनी
{ नमो नमो नाणदिवायरस्स {{
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