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________________ पमा जैसे बाह्य जीवन का आधार श्वास है वैसे ही आभ्यंतर जीवन का आधार प्रेम है। बिना प्रेम के जिन्दगी मौत है। कहते हैं इस दुनिया में एक भी दरवाजा ऐसा नहीं जो प्रेम की चाबी से खुलता न हो। अक्सर ऐसा होता है कि जो हमें चाहता है उसे प्रेम देने में हमें कोई कठिनाई नहीं होती परंतु जहाँ से हमें तिरस्कार और दुत्कार मिलता हो उन्हें प्रेम देना बड़ा कठिन लगता है। सामने वाले का विचित्र व्यवहार देखकर तिरस्कार जागृत हो ही जाता है। अधिकांशतः हमारे जीवन में प्रेम के बदले में प्रेम पनपता है या उसके सतत सद्व्यवहार के कारण प्रेम स्थिर रहता है। ज्ञानी कहते हैं - जैसे गाय घास खाकर भी बदले में दूध देती है, वैसे ही तिरस्कार के बदले में भी प्रेम देना सीखो। एक साक्षात् उदाहरण से बात सिद्ध हो जाती है कि चंडकौशिक के दुष्ट व्यवहार का जवाब प्रभु महावीर ने प्रेम से दिया था। दिल के द्वार पर बैठा हआ प्रेम का चौकीदार आवेश और तिरस्कार के प्रवेश को रोकने में समर्थ है क्योंकि प्रेम में न वैचारिक मतभेदों के लिए कोई स्थान होता है न प्रेम सहिष्णुता की सीमा को जानता है। प्रेम के देने से चाहे दूसरा सुगंधित हो या न हो पर स्वयं का जीवन तो सुवासित हो ही जाता है। मित्ति मे सटवभूएसु १५. • TOWARDS YOU ०० देने से बढ़ने वाली और बाँटने से विकसित होने वाली चीज है - प्रेम । 116 ain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003222
Book TitleLife Style
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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