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________________ 28 : आनंदघन पदसृष्टि में मानस-विहार करने पर एक विशिष्ट प्रकार की आध्यात्मिक अनुभूति होती है । अध्यात्मवाणी का गांभीर्य, गहराई, वाणी-वैचित्र्य और उसमें तत्त्व-निरूपण तथा हृदय-स्पर्शिता आदि उनके पदों में हैं । सच्चे आस्वादन के लिए जैन परिभाषा का उचित ज्ञान, आत्मसाधना का अनुभव, योगाभ्यास और जीवन की समभावशीलता महत्त्वपूर्ण ही नहीं, अनिवार्य हैं । जिस प्रकार किसी आत्मसाधक योगी को अपनी साधना के बल पर अमृतत्व प्राप्ति की प्रतीति हुई हो उसी भाँति उनके शब्दों में आत्मविश्वास, स्वाभिमान, पुरुषार्थ और मस्ती का आलम दृष्टिगत होता है ।। अपने स्तवनों में उन्होंने आध्यात्मिक विकास की क्रमिक रूपरेखा प्रस्तुत की है, जबकि अपने पदों में उन्होंने भिन्न-भिन्न समय और स्थितियों में प्राप्त अनुभवों को काव्यस्थ किया है । कवि के पदों में सहज प्रवाह का कारण यह है कि जो हृदयस्थ था वही पदस्थ हुआ है । वे किसी वादविशेष, विचारविशेष या संप्रदायविशेष के आग्रही या दुराग्रही नहीं हैं । किसी विशेष दर्शन की सर्वोपरिता का वे आग्रह नहीं रखते हैं । इसीलिए तो अध्यात्म के समग्र आकाश के दृष्टा आनंदघन से हमें आत्मप्रबोधन, आत्मानुभव और आत्मसाक्षात्कार की पदसरिता प्राप्त होती है । अनासक्त कवि की कविता की आधारभूमि है - स्वानुभूति और उनकी कविता उसी आत्मानुभूति की प्रमाणिक अभिव्यक्ति है । इसीलिए उनकी वाणी में आत्मानुभव का तेजस्वी झंकार है । निजानुभूति से प्राप्त की गई खुमारी है, योगसाधना के अंत में प्राप्त हुआ आनंद है और आत्मस्पर्शी संयम-साधना के कारण ये अध्यात्मपूर्ण पद भावक को एक भिन्न (अलौकिक) लोक में ले जाते हैं । लोगों के कण्ठाहार बने इन पदों ने न जाने कितने लोगों को मोह-कषाय की निद्रा में से डंके की चोट के साथ जगाकर, उन्हें सच्चा पथ प्रदर्शित करके अनुभवलाली का आशिक बनाया है । आनंदघन आत्मविचार करके आत्मानुभव का रस-पान करके आत्मानंद की अविचल कला प्राप्त करने का पुरुषार्थ आलेखित करते हैं । 1. टिप्पण श्री आनंदघनजीनां पदो - भाग - १, ले. मोतीचंद गिरधरलाल कापडिया, प्रकाशक : श्री महावीर जैन विद्यालय, मुंबई, सितम्बर 1982, पृ. 121 श्री आनंदघनजीनां पदो - भाग - २, ले. मोतीचंद गिरधरलाल कापडिया, प्रकाशक : श्री महावीर जैन विद्यालय, मुंबई, मई 1983, पृ. 432 श्री आनंदघनजीनां पदो - भाग - १, मोतीचंद गिरधरलाल कापडिया, प्रकाशक : श्री महावीर जैन विद्यालय, मुंबई, सितम्बर 1982, पृ. 10 श्री आनंदघनजीनां पदो - भाग - २, मोतीचंद गिरधरलाल कापडिया, प्रकाशक : श्री महावीर जैन विद्यालय, मुंबई, मई 1983, पृ. 382 श्री आनंदधनजीनां पदो - भाग - १, मोतीचंद गिरधरलाल कापडिया, प्रकाशक : श्री महावीर जैन विद्यालय, मुंबई, सितम्बर 1982, पृ. 239 वही, पृ. 290 6. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003220
Book TitleBhartiya Sahitya ke Nirmata Anandghan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumarpal Desai
PublisherSahitya Academy
Publication Year2006
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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