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________________ था। [14]... प्रथम परिच्छेद अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन मेवाड में श्री केशरियाजी, करेडा, उदयपुर, चितौड, इस संघ के सिद्धाचल पहुंचने पर कुछ विद्वेषी तेजोद्वेषियों राजनगर आदि। के द्वारा विघ्न भी उपस्थित किया गया एवं उपर गिरिराज की यात्रा मालवा में : मांडवगढ, तालनपुर, मक्षी, उज्जैन, भोपावर, करते रोकने का प्रयास किया गया था परंतु थराद (थीरपुर क्षेत्र) की मोहनखेडा आदि। वीर एवं सजग प्रजा के सामने द्वेषियों को मैदान से किनारा लेना इनमें आपने केशरियाजी-मक्षी एवं मांडवगढ की कई बार पड़ा। इतना ही नहीं, भक्तिवश संघ के यात्री भक्तोंने गुरुदेवश्री को यात्राएँ कीं। क्रियोद्धार के बाद चार बार सिद्धाचल की, दो बार अपने कंधो पर उठाकर यात्रा हेतु ऊपर चढना शुरु कर दिया तब गिरनार की एवं 7 बार शंखेश्वर की यात्राएँ की जिसमें सिद्धाचल गुरुदेव ने बड़ी मुश्किल से भक्तों का समझाकर उनके कंधे से नीचे की प्रत्येक यात्रा में तेला, गिरनार में बेला, केशरियाजी एवं शंखेश्वर उतर पैदल गिरिराज चढकर संघ सहित आनंद से यात्रा की। में एक-एक अट्ठाई83 एवं कई बार तेला4 तथा मक्षी में 5 बार (2) कडोद से सिद्धाचल :अट्ठम (तेला) का तप किया।85 आचार्यश्री की प्रेरणा से उनकी निश्रा में निकले इस संघ के संघपति खेताजी वरदाजी थे। इन्होंने इस संघ में एवं स्वयं के आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरिकृत संघयात्राएँ : नगर में उनके द्वारा निर्मित जिनालय में इन दोनों कार्यों में मिलकर आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वजीने समय-समय पर अपने डेढ लाख रुपये खर्च कर जन्म-जीवन और लक्ष्मी को सफल किया प्रवचनो में श्रोताओं को छ'री (समकितधारी, पदचारी, ब्रह्मचारी, सचित्तपरिहारी, एकल आहारी, भू-संथारी) पालक तीर्थ यात्रा संघ (3) खाचरौद से मांडव और मक्षी जी :का महत्त्व समजाया जिससे आपकी प्रेरणा से अनेक श्रावकों द्वारा आचार्यश्री की निश्रा में निकला यह संघ वि.सं. 1954 छोटे-बड़े कई तीर्थों के यात्रा संघ निकले जिसमें से हमें व्यवस्थित में चैत्र वदि दशमी के दिन मक्षी पहुंचा था। इस संघ के संघपति रुप से चार बड़े संघो का विस्तृत वृतान्त प्राप्त हुआ हैं, जिनका चांदमलजी लुणावत ने उस जमाने में 33000 (तैंतीस हजार) रुपयों यहाँ संक्षिप्त वर्णन किया जा रहा हैं। का खर्च कर सुकृत पुण्य उपार्जन किया था। (1) थराद से सिद्धाचल और गिरनार : (4) खाचरौद से मक्षी जी :यह संघ वि.सं. 1944 में आचार्यश्री के थराद चातुर्मास वि.सं. 1962 के उत्तरार्ध में आचार्यश्री की निश्रा में ठाकुर के बाद उसी वर्ष में निकला था। इस संघ के संघपति संघवी चुन्नीलाल मुणत ने खाचरौद से मक्षी का संघ निकालकर तीस अंबावीदास मोतीचंद पारेख थे। इस संघ में निज गच्छ के साथ हजार रुपये खर्च किये थे। यह संघ वि.सं. 1962 चैत्र वदी दशमी ही अन्य गच्छ के आचार्यो के साथ 125 साधु, 91 साध्वियाँ, 5000 के दिन मक्षी पहुंचा था। इस संघ यात्रा की स्मृति में गुरुदेवश्री श्रावक-श्राविकाएँ, दो जिनालय एवं 101 सेज (वस्त्राच्छादित ने 'वामानंदन वंदन चालो' प्रसिद्ध बृहद् स्तवन बनाया था। बैलगाडियाँ), व्यवस्ता हेतु 400 बैलगाडियाँ, 300 घुडसवार रक्षक, 100 ऊँट-सवार थे। साथ ही अनेक यति-महात्मा, भोजक-गायक और नौकर आदि थे। यह संघ थराद से राधनपुर, शंखेश्वर, अहमदाबाद होकर 82. धरती के फूल पृ. 225 सिद्धाचलजी पहुंचकर यहाँ 15 दिन रुककर अष्टाह्निका महोत्सवपूर्वक 83. वही शांति से यात्रा कर गिरनार की यात्रा करके विरमगाम से पुनः शंखेश्वर 84. केशरियाजी यात्रा वर्णन - श्रीमद् राजेन्द्रसूरि रास - उत्तरार्ध एवं केशरियाजी की यात्रा करके थराद पहुंचा था। इस संघ में उस समय के करीब के चार स्तवन दो लाख रुपये का खर्च हुआ था। इस संघ-यात्रा की याद में 85. धरती के फूल, पृ. 225 आचार्यश्रीने "आज नो दहाडे रे सजनी" - यह स्तवन यात्रा के 86. राजेन्द्रगुणमञ्जरी पृ. 63 से 65; वि.सं. 2044 में थराद से सिद्धाचल दिन ही बनाया था। का संघ-(संघवी पूनमचंद धरु । पानाचंद धरु) भत्तीए जिणवराणं) भत्तीए जिणवराणं, खिज्जंती पुव्वसंचिया कम्मा। गुणपगरिस बहुमाणो, कम्मवणदवाणलो जेण ॥1॥ भत्तीए जिणवराणं, खिज्जंती पुव्वसंचिआ कम्मा। आरियणमुकारेणं, विज्जा मंता य सिज्झंति ॥2॥ भत्तीए जिणवराणं, परमए खीणपेज्जदोसाणं । आरुग्ग बोहिलाभ, समाहिमरणं च पावंति ॥3॥ - अ.रा.पृ. 4/2106 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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