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________________ [2]... परिशिष्ट अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन 2. चतुर्थ स्तुति में पापोपदेश, धन, पुत्र आदि पौद्गलिक सुख प्राप्ति की प्रार्थना होने से वह भावानुष्ठान सामायिक, प्रतिक्रमण आदि में त्याज्य है अतः उनमें चौथी स्तुति ( थुई ) करने से जिनाज्ञाभङ्ग रुप दोष लगता है P 2 (a) "यक्ष सर्वानुभूतिर्दिशतु मम सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम् " ॥ 8 ॥ तस्यास्तु (b) दोलत दायी अधिक सवाई, देवी दे ठकुराई । श्री वीर विजय रचित पंचमी की स्तुति में। (c) शशी वयणी कमल विलोचना, चक्केसरी देवी विरोचना । रिसहेसर भक्ति विधायिका, वरदान देजो सुप्रभाविका ॥ स्तुति तरंगिणी प्र. भा. पृ. 10 (d) चैत्रीपूनम दिन देवी चक्केसरी, सौभाग्य दो सुखकंदजी । वही पृ. 11 (e) श्री अजितनाथ, संभवनाथ, शीतलनाथ, कुंथुनाथ एवं अरनाथ भगवान के जोडे की चतुर्थ स्तुतियाँ श्री यशोविजयगणिकृत ऐन्द्रस्तुतयः पृ. 330, 331, 336, 340, 341 (f) "विधिनोपयुक्तस्याशंसादोषरहितस्य, सम्यग्द्दष्टेर्भक्तिमत एवं सम्यक्करणं, नान्यस्य' - ललित विस्तरा पृ. 11 (g) अप्राप्तप्राप्ताभिलाषणे - आचारांग - 2/2 (h) ततोविधिसमासेवकः कल्याणमिव महदकल्याणं आसादयति । उक्तं च - " धर्मानुष्ठानवैतथ्यात्प्रत्यपायो महान् भवेत् । रौद्रदुःखौघजनको दुष्प्रयुक्ता दिवौषधात् ॥” - ललित विस्तरा पृ. 17 (i) स्तुति स्तोत्राणि जिनानां तु आप्तानामेव ॥ - पंचाशक सूत्र की टीका - ( धरती के फूल पृ. 172 से उद्धत ) (j) अधिगतगोधिका कनकस्कू तव गौर्युचिता - कमलराजि तामरसभास्यतु, लोपकृतम् । मृगमदपत्रङ्गातिलकैर्वदनं दधती कमलकरा जितामरसभाऽस्यतु लोपकृतम् ॥ 80 ॥ 20 ॥ - श्री शोभनमुनिकृत श्री मुनिसुव्रत जिनके जोडे में गौरी देवीकी स्तुति - पृ. 244 (k) विपक्षव्यूहं वो दलयतु गदाक्षावलिधराऽसमा नालीकालीविशदचलना नालीकवरम् । समध्यासीजाऽम्भोभृतधननिभाऽम्भोधितनया-समानाली काली विशदचलनानालिकवरम् ॥8॥29॥ -वही श्री नमिनाथजिन के जोडेमें काली देवी की स्तुति पृ. 253 (1) हस्तालम्बितचूतलुम्बिलतिका यस्या जनोऽभ्यागमद् विश्वासेवितताम्रपाद परतां वाचा रिपुत्रासकृत् । भूर्ति वितनोतु नोऽर्जुनर्सचः सिंहेऽधिस्ढोल्लसद् विश्वासे वितताम्रपादापरताऽम्बा चारिपुत्राऽसकृत् ॥88122 ॥ Jain Education International -वही श्री नेमिनाथजिन के जोडेमें अम्बा देवी की स्तुति पृ. 264 - (m) याता या तारतेजाः सदसि सदसिभूत् कालकान्तालकान्तापारंपारिन्द्रराजं सुखसुखधूपूजिताडरं जितारम् । सा त्रासात् त्रायतां त्वामविषमविषभृद् भूषणाऽभीषणाभीनाना पत्नी कुवलयवलयश्यामदेहाऽमदेहा 11211231 - वही श्री पार्श्वनाथजिन स्तुतिके जोड़े में वैरोट्या देवी की स्तुति पृ. 276 - श्री शोभनमुनिकृत स्तुति चतुर्विशतिका (सचित्र) प्रकाशक - शाह वेणीचन्द्र सूरचन्द्र द्वारा श्री आगमोदयसमिति: । मुद्रक - मुंबई वैभव प्रेस मुंबई, वि.सं. 1982 प्रति 1250 - - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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