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[434]... षष्ठ परिच्छेद
अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन
पठमं नाणं तओ दया। पहले ज्ञान फिर दया (तदनुसार आचरण)।
- अ.रा.पृ. 3/556; दशवैकालिक-4/33 मेघाविणो लोभ भयावतीता। ज्ञानी लोभ और भय से सदा मुक्त होता है। ___ - अ.रा.पृ. 3/557; सूत्रकृतांग -1/12/15 मन एवं मुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । मन ही मनुष्यों के बंध और मुक्ति का कारण है।
- अ.रा.पृ. 3/751; ब्रह्मबिन्दूपनिषद-2 न य मूल विभिन्नए घडे, जलमादीणि धरेइ कत्थइ। जिस घडेके पेंदें में छेद हो गया हो, उसमें जल आदि कैसे टिक सकते है ?
- अ.रा.पृ. 3/859; बृहत्कल्पभाष्य 4363 एगऽप्या अजिए सत्तु । स्वयं की असंयत आत्मा ही स्वयं का एक शत्र है।
- अ.रा.पृ. 3/963; उत्तराध्ययन 23/38 काले कालं समायरे। समय पर समयोचित कार्य करना चाहिए।
- अ.रा.पृ. 3/970; 6/1165, उत्तराध्ययन 131; 5/2/41 सद्धा परम दुल्लहा। धर्म में श्रद्धा होना परम दुर्लभ है।
- अ.रा.पृ. 3/1053; उत्तराध्ययन-3/9 नाण किरियाहि मोक्खो। ज्ञान और क्रिया से ही मुक्ति मिलती है। __- अ.रा.पृ. 3/1126; विशेषावश्यक भाष्य-3 अगुणिस्स नत्थि मोक्खो। अगुणी (दर्शन-ज्ञानादि से रहित) व्यक्ति की मुक्ति नहीं होती।
- अ.रा.पृ. 3/1128; उत्तराध्ययन 28/30 नाणेण विणा न होति चरण गुणा। सम्यग्ज्ञान के बिना जीवन में चारित्र नहीं हो सकता।
- अ.रा.पृ. 3/1128; उत्तराध्ययन-28/30 तस्मात् चारित्रमेव प्रधानं मुक्तिकारणं । चारित्र ही मुक्ति का प्रधान कारण है।
- अ.रा.पृ. 3/1143; आवश्यक बृहवृत्ति, अध्ययन-3 पंथ समा नत्थि जरा पंथ (रास्ते) के समान कोई वृद्धावस्था नहीं है। ___- अ.रा.पृ. 3/1359; सुभाषित सूक्त संग्रह-37/4 दारिद्द समो पराभवो नत्थि। दरिद्रता से बढकर कोई पराजय नहीं है।
- अ.रा.पृ. 3/1359; सुभाषित सूक्त संग्रह-37/4 मरण समं नत्थि दुःखं (भयं)। मृत्यु से बढकर कोई भय (दुःख) नहीं है।
- अ.रा.पृ. 3/1359; सुभाषित सूक्त संग्रह-37/4 खुहा (छुआ) समा वेयणा नत्थि । भूख से बढकर कोई वेदना नहीं हैं।
- अ.रा.पृ. 3/1359; सुभाषित सूक्त संग्रह-37/4
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