________________
षष्ठ परिच्छेद आचारपरक शब्दावली में आचारपरक
कथाएँ एवं सूक्तियाँ
समीक्षकोंने दर्शनशास्त्र के तीन प्रमुख विभाग किये हैं 1. तत्त्व विज्ञान अर्थात् विश्व में कौन से तत्त्व हैं, जो जानने योग्य है; 2. प्रमाण विज्ञान अर्थात् उन तत्त्वों को किन साधनों के द्वारा जाना जा सकता है; और 3. आचार विज्ञान अर्थात् उन तत्त्वों को जानकर आचरण योग्य क्या है? जैन सिद्धान्त की भाषा में प्रतिपादित सम्यगदर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र क्रमशः इन्हीं तीनों विभागों का प्रतिनिधित्व करते प्रतीत होते हैं।
भारतीय दर्शनों की एकरुपता इस तथ्य से है कि सभी हुई है उसका वर्णन यदि अभिधान राजेन्द्र कोश में है तो उसका दर्शन मानवमात्र के जीवन का एक लक्ष्य प्रतिपादित करते हुए उस उल्लेख कहाँ पर है - इसका संकेत किया जाये। हमने यहाँ पर केवल लक्ष्य को पाने का निश्चित उपाय अपने आचरण शास्त्र द्वारा निश्चित उन कथाओं का संकेत किया है जो आचार शास्त्र से सम्बन्धित है। करते हैं। अर्थात् आचरणहीन ज्ञान का होना या न होना व्यर्थ है।
वृत्तों का आधार बनाकर अनेक कवियों ने काव्यमय साहित्य इस दृष्टि से पुरुषार्थ चतुष्टय का उपदेश किया गया है। पुरुषार्थ चतुष्टय की रचनाएँ प्रस्तुत की हैं। इन रचनाओं में कोई-कोई वाक्य सुभाषित का हार्द यह है कि 'धर्म' पूर्वक जीवन यापन किया जाये और के रुप में प्रसिद्ध होकर लोक में प्रचलित हो गये। इन्हीं सुभाषितों जीवनोपकरण के रुप में 'अर्थ' भी धर्मपूर्वक प्राप्त किया जाये किन्तु ___को हम 'सुक्ति' नाम से जानते हैं। उस अर्थ का परिग्रह उतना ही हो जितना आवश्यक है। अर्थ की
आज सुभाषितों और सूक्तियों पर अनेक कोश ग्रन्थ उपलब्ध तीन गतियाँ प्रसिद्ध है, दान, भोग और नाश। इनमें भी दान को है। आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्ररीश्वरजीने भी सुभाषितों और सूक्तियों प्रधानता दी गयी है। मानव मात्र का स्वभाव संचय करने का है; को अपने कोश में स्थान देकर मानो यह घोषणा कर दी थी कि यदि संचय के पश्चात् आसक्ति से भोग किया जाये तो वह भी कालान्तर में सुभाषितों और सूक्तियों पर भी पृथक्-पृथक् कोश ग्रन्थों अकल्याणकारी है और भोग न किया जाये तो उस अर्थ का नाश
के प्रणयन का समय आ गया है। स्वयं सिद्ध है। भोग का तात्पर्य इन्द्रिय विषयों के सेवन से है।
वर्तमान में दो प्रकार के कोश दृष्टिगोचर होते हैं - मुहावरा भारतीय दर्शन में इसे 'काम' पुरुषार्थ माना गया है। काम भी धर्मपूर्वक
कोश और लोकोक्ति कोश/सुभाषित कोश। संस्कृत साहित्य की धारा ही होना चाहिए - यह भारतीय मनीषा का प्रमुख ध्यातव्य विषय
में सभी ऐसे कथन जो उक्ति के रुप में जनभाषा में व्यवहत हों है। अन्तिम लक्ष्य 'मोक्ष' तो धर्म के बिना सम्भव ही नहीं है। 'मोक्ष' प्राप्त करने की निश्चित प्रक्रिया है जिसे दर्शनशास्त्र में आचार
'सुभाषित' या 'सूक्ति' के अन्तर्गत आते हैं। यदि संक्षेप में दोनों विज्ञान में समाहित किया गया है।
को पृथक करना हो तो मेरी अल्पमति के अनुसार निम्नांकित रुप किसी दर्शनशास्त्र में प्रतिपादित आचार विज्ञान कितना सैद्धांतिक से परिभाषित किया जाना उचित होगाहै या कितना प्रायोगिक स्वरुप का है - यह तथ्य व्यवहार में देखने मुहावरा :पर ही ज्ञात हो सकता है। पुराण और इतिहास के द्वारा यह समझाया
विधायक (प्रतिपादक, प्रतिषेधक, जिज्ञासात्मक, प्रतिषेध जाता है कि वस्तुतः आचार विज्ञान के सोपान मानव शक्ति द्वारा
जिज्ञासात्मक) वाक्यों के अर्थ की गम्यमानना से युक्त लक्षणाशक्ति। आरोहण योग्य है; कपोल कल्पना नहीं। जो आज विद्यमान होता
व्यञ्जनशक्ति सम्पन्न वाक्य मुहावरा है। है वही कल इतिहास बन जाता है जिसे कभी इतिहास ग्रन्थों में
उदाहरण - अन्धस्य वर्तकी लाभः (अन्धे के हाथ बटेर (सम्प्रदायानुसार इन्हें 'चरित' (चरित्र) आदि नाम दिये जाते हैं) तो
लगना)। कभी पुराण ग्रन्थों में समाहित कर लिया जाता है। जैन साहित्य में
लोकोक्ति:त्रिषष्टि शलाका पुरुषों के जीवन वृत्तों को पुराणों में स्थान दिया गया है तो अन्य वृत्तों को साधारण इतिहास ग्रन्थों में।
काल्पनिक घटना प्रधान या वास्तविक घटना प्रधान लक्षणा/ पुराण और इतिहास में वर्णित किसी विषय विशेष से सम्बन्धित व्यञ्जना शक्ति से युक्त वाक्य को लोकोक्ति कहते हैं। आख्यान का उपाख्यान को कथा के नाम से जाना जाता है। समीक्षकोंने
उदाहरण - दुष्प्रापाः द्राक्षा अम्ला (लोमडी को अंगूर खट्टे काव्य और काव्यांगो का विबेचन करते हुए कथा ग्रन्थों का वर्गीकरण पृथक् से प्रतिपादित किया है। यहाँ पर काव्यशास्त्र की परिभाषा में
____ यद्यपि उपर्युक्त परिभाषाओं को काव्यविदों द्वारा परीक्षित किया कथात्व अपेक्षित नहीं है, किन्तु मात्र यह आशय है कि आचार शास्त्र
जाना आवश्यक है। कारण यह है कि आज कोई लोकोक्ति 'दुष्प्रापाः में प्रतिपादित गुणों और दोषों के विषय में कौन सी घटना जनप्रसिद्ध
द्राक्षा अम्ला' को मुहावरो के अन्तर्गत समाविष्ट करते हैं तो कोई
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org