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________________ 310 310 310 311-312 परिषहजय परिषह के प्रकार परिषहोदय की संख्या आठों कर्म और परिषह गुणस्थान और परिषह दश कल्प .............. द्वादश भिक्षु प्रतिमा ............ प्रतिमा वहन हेतु योग्यता प्रतिमाधारी साधु की दिनचर्या के नियम भावनाएँ .... अणुप्पेहा (अनुप्रेक्षा) भावना के भेद .......... बारह भावनाओं के नाम- 1. अनित्य, 2. अशरण 3, ससार, 4. एकत्व 5. अन्यत्व, 6.असुचित्व, 7. आश्रव, 8. संवर, 9. निर्जरा 10. लोकस्वभाव 11. बौद्धिदुर्लभ, 12. धर्मकोर्हन् भावना मैत्री आदि चार भावनाएँ अन्य अपेक्षा से भावनाओं का वर्गीकरण (क) असंक्लिष्ट भाव भावना/प्रशस्त भावना, (ख) संक्लिष्ट भाव-भावना/अप्रशस्त भावना तप 'तप' शब्द की व्युत्पत्ति, तपकी परिभाषाएँ तप के दो रुप बाह्य तप के छह प्रकार (1) अनशन तप-प्रकार, विधि, काल, अधिकारी (2) ऊनोदरिका तप (3) वृत्ति-संक्षेप (भिक्षाचारी) तप (4) रस-परित्याग तप (5) कायक्लेश तप (6) प्रतिसंलीनता तप आभ्यन्तर तप प्रायश्चित तप, प्रायश्चित के प्रकार प्रतिसेवना प्रायश्चित संयोजना-आरोपणा-परिकुञ्चना प्रायश्चित आलोचना आलोचना के भेद आलोचक : आराधक-विराधक प्रतिक्रमाणार्ह -तदुभय/उभयाह -विवेकाह -व्युत्सर्गार्ह -तपोऽहं प्रायश्चित छेद-मूलार्ह (मूल)-अनवस्थाप्य प्रायश्चित पाराञ्चित-आशातना-प्रतिसेवना प्रायश्चित्त पाराश्चित प्रायश्चित के प्रकार आलोचनादाता की दस विशिष्टताएँ आलोचना करने योग्य व्यक्ति आलोचना के दस दोष प्रायश्चित्त देते समय व्यक्ति की परिस्थिति का विचार आलोचना का योग्य साक्षी विनय तप विनय के भेद ज्ञानविनय - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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