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________________ Jain Education International [132]... तृतीय परिच्छेद नय कोष्टक : 1. नय66 निश्चय नय67 68 व्यवहार नय शुद्धनिश्चय नय (केवलज्ञानी आत्मा) अशुद्धनिश्चय नय मत्यदिज्ञानी आत्मा (छद्मस्थ)) 69 सद्भूत व्यवहार नय असद्भूत व्यवहार नय For Private & Personal Use Only अनुपचरित (शुद्ध सद्भूत व्यवहार) उपचरित (अशुद्धसद्भूत व्यवहार) अनुपचरित (संश्लेषित असद्भूत व्यवहार) उपचरित (असंश्लेषित असद्भूत व्यवहार) सोपाधिक निरुपाधिक अभिधान राजेन्द्र कोश की आचारपरक दार्शनिक शब्दावली का अनुशीलन 66. अ.रा., पृ. 4/1892; आलापपद्धति, द्रव्यस्वभावप्रकाशकनयचक्र, पृ. 228; बृहद्र्व्य संग्रह, गाथा 3 की टीका, पृ. 19; द्रव्यानुयोगतर्कणा-8/13; 67. अ.रा., पृ. 4/1892, तत्र निश्चयो द्विविधः; शुद्धनिश्चयोऽशुद्धनिश्चयश्च । - द्रव्यस्वभावप्रकाशकनयचक्र से जिनवरस्यनयचक्रं, पृ. 74 पर उद्धृत; द्रव्यानुयोगतर्कणा 8/1-2, 68. अ.रा.पृ. 4/1892; द्रव्यस्वभावप्रकाश नयचक्र, पृ. 228; जिनवरस्य नयचक्रम, पृ. 108 69. वही www.jainelibrary.org
SR No.003219
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh ki Shabdawali ka Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshitkalashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2006
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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