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आगम का अध्ययन क्यों ?
शासनप्रभाविका मैनासुन्दरीजी म.सा.
आगम के अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्त्व विषय पर आचार्यश्री हीराचन्द्र जी म.सा. की आज्ञानुवर्तिनी शासनप्रभाविका महासती श्री मैनासुन्दरीजी म.सा. ने सामायिक-स्वाध्याय भवन में ३ से ५ अक्टूबर २००१ तक प्रवचन फरमाये थे । प्रवचनों को संकलित / व्यवस्थित कर लेख रूप में प्रकाशित किया जा रहा है। - सम्पादक
आगम क्या है ?
हमारे समक्ष एक प्रश्न उभर कर आता है कि आगम क्या है ? उत्तर स्पष्ट नजर आता है कि तीर्थंकर भगवन्तों के हृदय में जगज्जीवों के प्रति अनन्त करुणा का स्रोत लहलहाता है। वे विश्व के जीवों के हित व कल्याण के लिए जो अमृतमय देशना फरमाते हैं, प्रवचन देते हैं, उसी प्रवचन को आगम कहते हैं। शास्त्रों में कहा है
"अत्थं भासइ अरहा, सुत्तं गंथन्ति गणहरा निउणं ।"
अर्थात् अर्थ रूप आगम के वचन तीर्थकर फरमाते हैं और उसको सूत्ररूप में गणधर गूंथते हैं। उन्हीं के वचन आगम कहलाते हैं । अथवा तो रागद्वेष के विजेता महापुरुषों के वचन आगम कहलाते हैं। आप्तवाणी आगम है।
आगमों का अध्ययन क्यों किया जाता है?
आगमों का अध्ययन करने के पीछे हमारा बहुत बड़ा हेतु है। अनादिकाल से जीवन में रहे हुए काम, क्रोध, मोह, वासना एवं विकारों का आगम अध्ययन से जड़मूल से नाश होता है। जीवन में ज्ञान का महाप्रकाश प्रकट होता है। उत्तराध्ययन सूत्र के बत्तीसवें अध्ययन में श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने फरमाया
"नाणस्स सव्वस्स पगासणाए अण्णाणमोहस्स विवज्जणाए । रागस्स दोसस्स य संखएण, एगन्तसोक्खं समुवेइ मोक्खं । "
अर्थात् सम्पूर्ण ज्ञान के प्रकाशन से, अज्ञान और मोह के नाश से, राग और द्वेष के सर्वथा क्षय से जीव एकान्त सुख रूप मोक्ष को प्राप्त करता
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वीतराग भगवन्तों की वाणी निर्दूषित होती है । उसमें वचनातिशय होता है । दशाश्रुतस्कंध सूत्र में आचार्यों की आठ संपदाओं का विचार चला है। उनमें एक वाचना संपदा है। उसमें बताया है कि आचार्य महाराज आदेय वचन वाले होते हैं। उनके वचन को कोई भी लांघ नहीं सकता । चतुर्विध संघ उसे शिरोधार्य करता है । जब आचार्य श्री आदेय वचन वाले होते हैं तब फिर तीर्थंकर भगवन्त का तो कहना ही क्या ? तीर्थंकर भगवान के एक-एक वचन
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