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जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङक वस्तुत: कुन्दकुन्द के ग्रन्थ मोक्षमार्ग के जिज्ञासु के लिए जिनसिद्धान्तों को समझने के लिए आधार स्तम्भ हैं। कुन्दकुन्द के प्रमुख टीकाकार 1. अमृतचन्द्राचार्य- अमृतचन्द्राचार्य ने प्रवचनसार, समयसार एवं पंचास्तिकाय ग्रन्थों पर संस्कृत टीकाएं लिखी हैं। ये टीकाएं अत्यन्त विशद हैं एवं कुन्दकुन्द के हार्द को समझने की कुंजी हैं। इनकी भाषा अत्यन्त पाण्डित्यपूर्ण है। अत: कुछ कठिन अवश्य हैं। इन्होंने अपनी टीकाओं के भाव को प्रकट करने के लिए कुछ पद्य भी लिखे हैं जो ‘कलश' नाम से प्रसिद्ध हैं। ये कलशकाव्य विद्वानों में अत्यन्त प्रसिद्ध हैं एवं नित्य पाठ में सम्मिलित हो गए हैं। आचार्य ने अपना परिचय किसी भी टीका में नहीं दिया है। इनका समय विक्रम संवत् १००० के लगभग माना गया है। 2. जयसेनाचार्य- इन्होंने भी प्रवचनसार, समयसार, पंचास्तिकाय पर तात्पर्य नामक टीकाएं लिखी हैं। इनकी भाषा अत्यन्त सरल है एवं अध्यात्म को समझने के अनुरूप है। गाथाओं को सरल रूप से समझा कर विषय का खुलासा ग्रन्थ में कर दिया गया है। ये बारहवीं शती के विद्वान माने गए हैं। 3. श्रीपद्मप्रभमलधारिदेव- इनका समय विक्रम संवत् बारहवीं शती माना गया है। इन्होंने नियमसार पर तात्पर्यवृत्ति नामक संस्कृत टीका लिखी जो वैराग्य भाव एवं शान्तरस से परिपूर्ण अद्भुत टीका है। 4. भट्टारक श्रुतसागरसूरि- इनका समय विक्रम की सोलहवीं शती माना गया है। अष्टपाहुड के प्रारम्भिक छ: पाहुड़ों पर उनकी 'षट्पाहुड' नाम से संस्कृत टीका मिलती है। 5. पं. बनारसीदास- इनका समय १७वीं शती विक्रम संवत् माना गया है। यह श्रीमाल वैश्य थे। जैन साहित्य में हिन्दी भाषा के ये महान् कवि थे। इन्होंने कुन्दकुन्द के ग्रन्थों पर हिन्दी टीका लिखी एवं विषय को खोल कर रख दिया। 6. पं. जयचन्द्र-आत्मख्याति के आधार पर समयसार की सर्वप्रथम हिन्दी टीका पं. जयचन्द्र ने की। इनका टीकाकाल वि.सं. १८६४ है। ये खण्डेलवान जैन थे एवं संस्कृत भाषा के अच्छे ज्ञाता थे। पं. बनारसीदास एवं पं. जयचन्द्र का अन्य साहित्य भी बहुलता से प्राप्त होता है। विस्तार भय से उनकी चर्चा करना उचित नहीं।
-वरिष्ठ सहायक आचार्य, संस्कृत विभाग, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर
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