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आगम-साहित्य में प्रकीर्णकों का स्थान महत्त्व रचनाकाल एवं रचयिता 459 है, आशा है उसके माध्यम से ये ग्रन्थ उन परम्पराओं में भी पहुंचेगे और उनमें इनके अध्ययन और पठन– पाठन की रुचि विकसित होगी। वस्तुत: प्रकीर्णक साहित्य की उपेक्षा प्राकृत साहित्य के एक महत्त्वपूर्ण पक्ष की उपेक्षा है। इस दिशा में आगम संस्थान, उदयपुर ने साम्प्रदायिक आग्रहों से ऊपर उठकर इनके अनुवाद को प्रकाशित करने की योजना को अपने हाथ में लिया और इनका प्रकाशन करके अपनी उदारवृत्ति का परिचय दिया है। प्रकीर्णक साहित्य के समीक्षात्मक अध्ययन के उद्देश्य को लेकर इनके द्वारा प्रकाशित 'प्रकीर्णक साहित्य : अध्ययन एवं समीक्षा' नामक पुस्तक प्रकीर्णकों के विषय में विस्तृत जानकारी देती है। आशा है सुधीजन संस्था के इन प्रयत्नों को प्रोत्साहित करेंगे, जिसके माध्यम से प्राकृत साहित्य की यह अमूल्य निधि जन-जन तक पहुंचकर उनके आत्मकल्याण में सहायक बनेगी।
संदर्भ १. 'अंगबाहिरचोद्दसपइण्णयज्झाया'-धवला, पुस्तक १३, खण्ड ५, भाग५, सूत्र ४८,
पृ. २६७, उद्धृत- जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, पृ. ७०। २. वही, पृ. ७० ३. नन्दीसूत्र, सम्पादक मुनि मधुकर, अगाम प्रकाश समिति, ब्यावर १९८२, सूत्र ८१ ४. उद्धृत-पइण्णयसुत्ताइं, सम्पादक मुनि पुण्यविजय, महावीर जैन विद्यालय, बम्बई
१९८४, भाग१ , प्रस्तावना, पु. २१ ५. वही, प्रस्तावना पृ. २०-२१ ६. (क) स्थानांग सूत्र, सम्पादक मधुकरमुनि, आगम प्रकाश समिति, ब्यावर, १९८१,
स्थान १०, सूत्र ११६ (ख) समवायांग सूत्र, सम्पादक मुनि मधुकर, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, १९८२, समवाय ४४, सूत्र २५८। ७. देविदत्थओ (देवेन्द्रस्तव), आगम, अहिंसा समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर
१९८८, भूमिका पृ. १८-२२ ८. Sambodhi, L.D.Institute of Indology, Ahmedabad, Vol. XVIII, Year
१९९२-९३, pp. ७४-७६ ९. आराधनापताका (आचार्य वीरभद्र) गाथा ९८७ १०. दशवैकालिक चूर्णि पृ.३, पं. १२-उद्धृत पइण्णयसुत्ताई, भाग १, प्रस्तावना पृ. १९ । ११. (क) देवेन्द्रस्तव प्रकीर्णक, गाथा ३१० (ख) ज्योतिष्करण्डक प्रकीर्णक, गाथा ४०३---४०६। १२. देविंदत्थओ, भूमिका, पृ. १८-२२ १३. पिंडनियुक्ति, गाथा ४१८ । १४. (क) कुसलणुबंधि अध्ययन प्रकीर्णक, गाथा ६३।
(ख) भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, गाथा १७२ १५. गच्छायार पइण्णयं (गच्छाचार प्रकीर्णक), आगम अहिंसा समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर, १९९४, भूमिका पु. २०-२१ ।
___ -सागर टेन्ट हाउस, नई सड़क, शाजापुर (म.प्र.)
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