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जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङक
दिखाया है । १६ वें अधिकार में बताया है कि घास आदि का कच्चा घर यदि निर्जीव हो तो कितनी ऊंचाई होने पर वहां मासकल्प या वर्षाकाल रह सकते हैं।
पंचम उद्देशक
पंचमोद्देशक के प्रथम अधिकार में कहा है कि यदि कोई देव-देवी विक्रिया करके साधु-साध्वी के समक्ष विपरीत लिंगी स्त्री-पुरुष के रूप में उपस्थित हों और साधु-साध्वी उनको अच्छा समझे तो प्रायश्चित्त के अधिकारी होते हैं। दूसरे अधिकार में बताया है कि कोई साधु कलह करके दूसरे गण में जावे तो वहां कोमल वचनों से शान्त कर उसे फिर मूल गण में भेज देना चाहिये आदि। तीसरे अधिकार में प्रातः काल या सायंकाल भोजन करते समय यदि मालूम हो जाय कि सूर्य उदय नहीं हुआ अथवा अस्त हो गया है, तो क्या करना चाहिये, बताया है। चौथे अधिकार में रात्रि या विकाल में कंठ के नीचे से गुचलका जाय तो उसकी विधि कही गई है। पंचम अधिकार में बीज या जन्तु ऊपर से पात्र में गिर जाय तो किस प्रकार करना चाहिये, बताया गया है। छठे अधिकार में भोजन में सचित्त जल की बूंद गिर जाय तब उसके उपयोग की विधि कही गई है। सप्तम अधिकार में साध्वी के व्रत रक्षा का विचार है, उसके लिये निम्न बातों का निषेध है- १. एकाकिनी होकर भिक्षा, जंगल और ग्रामानुग्राम विहार करना। २. वस्त्र रहित रहना ३. अपात्र होना ४. कायोत्सर्ग में देह का भान भूलना ५. गांव के बाहर खड़े होकर आतापना लेना ६. स्थानायत आसन से रहना ७. एक रात्रि की पडिमा कायोत्सर्ग रूप करना ८. निषद्या आसन करना ९. उकडू आसन से बैठना . वीरासन से बैठना, ११ दंडासन करना १२. लकडासन करना १३. उलटे मुंह सोना, १४. सीधे सोना १५. आम्रकुब्जासन करना १६. एक पार्श्व से अभिग्रह कर लेटना, ये कार्य साध्वी को नहीं करने चाहिये ।
१०.
साधु की तरह साध्वी को आकुंचन पट्ट धारण करना, पीछे तकिये—सहारेदार-आसन पर बैठना, दोनों बाजू खुट्टीदार पट्ट पर बैठना, नालवाला तुम्बा रखना, खुली दंडी का रजोहरण धारण करना, पूंजनी में दण्डी रखना ये बातें भी साध्वियों के लिये निषिद्ध हैं। अष्टम अधिकार में मोक प्रतिमा का विचार है। नवम अधिकार में रात में रहे हुए आहार के सेवन का निषेध है। लेप भी रात में रखा हुआ गाढ कारण बिना निषिद्ध है । इसी प्रकार बासी रखे हुए घृत आदि की मालिश भी निषिद्ध है । दशवें अधिकार में परिहार तप वाले के व्यवहार की विधि कही गई है । ११ वें अधिकार में कहा है कि निस्सार आहार पाकर साध्वी निर्वाह नहीं कर सके तो दूसरी बार भी भिक्षा को जाना कल्पता है।
षष्ठ उद्देशक
प्रथम अधिकार में छ: अवचन कहे हैं- जैसे ? हँसी आदि से झूठ
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