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जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क अहिंसाणुव्रत के पांच अतिचारों के अन्तर्गत है । दिन, पक्ष अथवा मास आदि के विभाग से अपराधी साधु के दीक्षाकाल को कम करना छेद कहा जाता है । यह नौ प्रकार के प्रायश्चित्तों में से एक है।" 'तत्त्वार्थभाष्य सिद्धसेनवृत्ति में छेद का अर्थ अपवर्तन और अपहार बताया गया है। छेद, महाव्रत आरोपण के दिन से लेकर दीक्षा पर्याय का किया जाता है। जिस साधु के महाव्रत को स्वीकार किये दस वर्ष हुए हैं उसके अपराध के अनुसार कदाचित् पाँच दिन का और कदाचित् दस दिन का, इस प्रकार छ: मास प्रमाण तक दीक्षापर्याय का छेद किया जा सकता है। इस प्रकार छेद से दीक्षा का काल उतना कम हो जाता है।
छेद सूत्र की उत्तमता
छेदसूत्रों को उत्तमश्रुत माना गया है। निशीथभाष्य' में भी इसकी उत्तमता का उल्लेख हैं । चूर्णिकार जिनदास महत्तर' यह प्रश्न उपस्थित करते हैं कि छेदसूत्र उत्तम क्यों है? पुनः स्वयं उसका समाधान प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि छेदसूत्र में प्रायश्चित्त विधि का निरूपण है, उससे चारित्र की विशुद्धि होती है, एतदर्थ यह श्रुत उत्तम माना गया है।
छेदसूत्र नामकरण
दशाश्रुतस्कन्ध आदि आगम ग्रंथों की छेदसूत्र संज्ञा प्रदान किये जाने के आधार के विषय में भी जैन विद्वानों ने विचार किया है। शुब्रिंग के अनुसार छेदसूत्र और मूलसूत्र जैन परम्परा में विद्यमान दो प्रायश्चित्तों-छेद और मूल से लिये गये हैं। प्रो. एच. आर. कापडिया के अनुसार छेद का अर्थ छेदन है और छेदसूत्र का अभिप्राय उस शास्त्र से लिया जा सकता है जिसमें उन नियमों का निरूपण है जो श्रमणों द्वारा नियमों का अतिक्रमण करने पर उनकी वरिष्ठता (दीक्षापर्याय) का छेदन करते हैं।
कापड़िया के मत में इस विषय में दूसरा और अधिक तर्कसंगत आधार पंचकल्पभाष्य' की इस गाथा के आलोक में प्रस्तुत किया जा सकता है— परिणाम अपरिणामा अइपरिणामा य तिविहा पुरिसा तु । णातूणं छेदसुत्तं परिणामणे होंति दायव्यं ।। इस गाथा से यह निष्कर्ष निकलता है कि शास्त्रों का वह समूह जिसकी शिक्षा केवल परिणत ( ग्रहण सामर्थ्य वाले) शिष्यों को ही दी जा सकती है, अपरिणत और अतिपरिणत को नहीं वह छेदसूत्र कहा जाता है।
छेदसूत्रों के नामकरण के संबंध में आचार्य देवेन्द्रमुनि ने भी तर्क प्रस्तुत किये हैं । उन्होंने पहले प्रश्न किया कि अमुक आगमों को छेदसूत्र, यह अभिधा क्यों दी गयी ? पुनः उत्तर देते हुए कहा कि इस प्रश्न का उत्तर प्राचीन ग्रंथों में सीधा और स्पष्ट प्राप्त नहीं है। हाँ यह स्पष्ट है कि जिन सूत्रों को
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