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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 287 प्रक्रिया है जिसमें सतत अनुसंधान और गवेषणा होती रहती है। विज्ञान ने जो पहले सिद्धान्त संस्थापित किये थे आज वे सिद्धान्त नवीन प्रयोगों और अनुसंधानों से खण्डित हो चुके हैं। कुछ आधुनिक वैज्ञानिकों ने 'पृथ्वी गोल है' इस मान्यता का खण्डन किया है।" लंदन में 'फ्लेट अर्थ सोसायटी' नामक संस्था इस संबंध में जागरूकता से इस तथ्य को कि पृथ्वी चपटी है, उजागर करने का प्रयास कर रही है, तो भारत में भी अभयसागर जी महाराज व आर्यिका ज्ञानमती जी दत्तचित्त होकर उसे चपटी सिद्ध करने में संलग्न हैं । उन्होंने अनेक पुस्तकें भी इस संबंध में प्रकाशित की है I द्वितीय वक्षस्कार: एक चिन्जन द्वितीय वक्षस्कार में गणधर गौतम की जिज्ञासा पर भगवान महावीर ने कहा कि भरत क्षेत्र में काल दो प्रकार का है और वह अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी नाम से विश्रुत है। दोनों का कालमान बीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम है । सागर या सागरोपम मानव को ज्ञात समस्त संख्याओं से अधिक काल वाले कालखण्ड का उपमा द्वारा प्रदर्शित परिमाण है। वैदिक दृष्टि से चार अरब बत्तीस करोड़ वर्षों का एक कल्प होता है। इस कल्प में एक हजार चतुर्युग होते हैं। पुराणों में इतना काल ब्रह्मा के एक दिन या रात्रि के बराबर माना है। जैन दृष्टि से अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी के छह-छह उपविभाग होते हैं। वे इस प्रकार हैं क्रम १. सुषमा- सुषमा २. सुषमा ३. सुषमा - दुःषमा ४. दुःषमा - सुषमा ५. दुःषमा ६. दुःषमा – दुःषमा क्रम १. दुःषमा – दुःषमा २. दुःषमा ३. दुःषमा- सुषमा ४. सुषमा - दुःषमा ५. सुषमा अवसर्पिणी Jain Education International काल विस्तार चार कोटाकोटि सागर तीन कोटाकोटि सागर दो कोटाकोटि सागर एक कोटाकोटि सागर में ४२००० वर्ष न्यून २१००० वर्ष २१००० वर्ष उत्सर्पिणी काल विस्तार २१००० वर्ष २१००० वर्ष एक कोटाकोटि सागर में ४२००० वर्ष न्यून दो कोटाकोटि सागर तीन कोटाकोटि सागर चार कोटाकोटि सागर ६. सुषमा- सुषमा अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी नामक इन दोनों का काल बीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम है । यह भरतक्षेत्र और ऐरावतक्षेत्र में रहट-घट न्याय २० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
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