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जीवाजीवाभिगम सूत्र
श्री प्रकाश सालेचा
जीवाजीवाभिगम में जीव एवं अजीव के संबंध में विवेचन हुआ है। इसकी नौ प्रतिपत्तियों में जीव विषयक विवेचन ही मुख्य है, अजीव की चर्चा न्यून है। जीव के विभिन्न प्रकारों का विवेचन करने के साथ इसमें जम्बूद्वीप, विमान, पर्वत आदि खगोल- भगोल विषयक जानकारी का भी समावेश है। जीवजगत् के विशेष अध्ययन के लिए यह सूत्र विशेष उपयोगी है। संस्कृत (जैनदर्शन) में एम. ए. एवं वरिष्ठ स्वाध्यायी श्री प्रकाश जी सालेचा ने जीवाजीवाभिगम सूत्र का संक्षेप में परिचय दिया है। -सम्पादक
जीवाजीवाभिगम सूत्र में अजीव तत्त्व का संक्षेप में तथा जीव तत्त्व का विस्तार से वर्णन किया गया है। जीव एवं अजीव तत्त्व का वर्णन करने के कारण इस सूत्र का नाम जीवाजीवाभिगम है, जीवतत्त्व के वर्णन की मुख्यता होने से इसका अपर नाम जीवाभिगम भी है।
इसके अध्ययन से जीव एवं अजीव तत्त्व की सम्पूर्ण जानकारी हो सकती है। भगवान महावीर ने स्पष्ट किया कि जो जीव व अजीव तत्त्व को नहीं जानता वह मोक्षमार्ग को कैसे समझ सकेगा । साधक को सर्वप्रथम जीव व अजीव तत्त्व का ज्ञान करना आवश्यक माना गया है। इसी को जैन दर्शन में भेद - विज्ञान का नाम दिया गया है। जीव एवं अजीव की भिन्नता का बोध प्राप्त किये बिना जीव का मोक्ष संभव नहीं है । इस दृष्टिकोण से साधक के लिये जीवाजीवाभिगम सूत्र का अध्ययन करना आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण है। वर्तमान चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर प्रभु महावीर एवं इन्द्रभूति गौतम के बीच प्रश्नोत्तर के रूप में जीव अजीव के भेद-प्रभेदों पर विशद चर्चा हुई। उसी चर्चा को आचार्यों ने जीवाजीवाभिगम नामक सूत्र में प्रतिष्ठापित किया है ।
जीवाजीवाभिगम सूत्र की विषय वस्तु
प्रस्तुत आगम में नौ प्रतिपत्तियाँ ( प्रकरण) हैं। प्रथम प्रतिपत्ति में जीवाभिगम और अजीवाभिगम का विवेचन किया गया है। अभिगम का शाब्दिक अर्थ परिच्छेद अथवा ज्ञान है।
जैन दर्शन में नौ तत्त्व मान्य हैं- जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष। इनमें दो तत्त्व मुख्य मान्य हैं-- जीव व अजीव । शेष सात तत्त्व इन दोनों तत्त्वों के सम्मिलन व वियोग की परिणति मात्र हैं। इसी कारण प्रभु महावीर ने साधक एवं श्रावक को नवतत्त्व की सम्पूर्ण जानकारी करने की आज्ञा प्रदान की है। नवतत्त्व का ज्ञाता ही साधना के क्षेत्र में अपने चरण बढ़ा सकता है। संसार के अन्य आस्तिक दर्शनों ने भी इस प्रकार दो मूलभूत तत्त्वों को स्वीकार किया है। वेदान्त दर्शन ने इन दो तत्त्वों को ब्रह्म और माया के रूप में स्वीकार किया है। सांख्य दर्शन ने पुरुष
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