SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 248 जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क सैन्य वर्णनीय था । राजमहिषियाँ भी सदाचारी, पतिव्रता एवं लावण्यमयी थी। कूणिक के दरबार में विभिन्न अधिकारी, मंत्री आदि थे। उनमें गणनायक (जनसमूहों के नेता ), तन्त्रपाल या उच्च आरक्षी अधिकारी, मांडलिक राजा, मांडलिक / भूस्वामी, महामंत्री, अमात्य, सेठ, सेनापति आदि थे। दूत, सन्धिपाल (सीमारक्षक ), सार्थवाह, विदेशों में व्यापाररत व्यवसायी आदि से उसका दरबार सुशोभित था । भगवान महावीर का पदार्पण- चम्पानगरी में श्रमण भगवान महावीर का पदार्पण हुआ। यहां शास्त्रकार ने तीर्थंकर भगवान महावीर की शरीर सम्पदा का अत्यंत भावपूर्ण वर्णन किया है। वर्णन के प्रारंभ में 'नमुत्थुणं' के पाठ में वर्णित 'आइगराणं' से 'संयंसंबुद्धाणं' तक के विशेषणों, आध्यात्मिक विशेषताओं का वर्णन किया गया है जो पाठक के मन में अध्यात्मभावों का ज्वार सा उभारने में सक्षम है। तदनन्तर तीर्थंकर महावीर की शरीर सम्पदा का सर्वांग वर्णन कोमलपदावली में चित्रोपत्र शैली में किया गया है। प्रभु के अंग-प्रत्यंगों के वर्णन के साथ तीर्थकर के शुभ लक्षणों तथा उसके वीतराग स्वरूप का मर्मस्पर्शी वर्णन शब्दचित्रों में प्रस्तुत किया गया है। साधु संघ और स्थविर समुदाय से परिवृत्त भगवान महावीर पूर्णभद्र चैत्य में अवग्रह लेकर ठहरे और संयम-तप में आत्मा को भावित करते हुए विराजे । यहीं शास्त्रकार ने प्रभु की सेवा में रहे हुए अन्तेवासी अणगारों का भी वर्णन किया है, जो हृदय में वैराग्यभाव की हिलोरें पैदा करता है। अनेक अणगार स्वाध्याय में, शेष ध्यान तथा धर्मकथा आदि में निरत थे । अनेक तपस्वी थे जो रत्नावली, कनकावली तप तथा श्रमण प्रतिमाओं की साधना में सलंग्न थे। वे ज्ञानी, तपस्वी एवं लब्धिसम्पन्न थे । समिति गुप्ति के धारक, गुप्तेन्द्रिय, गुप्त ब्रह्मचारी अनेक गुणों के धारक, हवन की गई अग्नि के समान तेजस्वी और जाज्वल्यमान थे, दीप्तिमान थे, साथ ही स्थविरों के वर्णन में बताया कि वे सर्वज्ञ नहीं, परन्तु सर्वज्ञ समान थे। इन गुणसंपन्न अणगारों की गुणशाला से शास्त्र को सजाया गया है। प्रस्थान भगवान के दर्शनार्थ महाराज कूणिक व रानियों की तैयारी एवं नियुक्त कर्मचारियों से प्रभु महावीर के आगमन की सूचना पाकर महाराज कूणिक एवं राजरानियों ने तैयारी की। स्नान, मज्जन करके वस्त्राभूषण धारण किए। चतुरंगिणी सेना, सेनानायकों, मंत्रियों आदि कर्मचारियों को तैयारी एवं प्रस्थान का आदेश हुआ। सभी योग्य वेशभूषा में उपस्थित हुए। हाथी, घोड़े, रथ एवं पैदल चतुरंगिणी सेना तैयार थी । आठ मंगल श्री वत्स, जलकलश, छत्र- चंवर, विजय पताका आदि की विस्तृत सज्जा के साथ प्रस्थान का चित्रमय वर्णन प्रस्तुत किया गया है। देवदेवियों का एवं जनसमुदाय का आगमन दर्शन वन्दन - असुरकुमारों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy