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| जैन आगम-साहित्य : एक दृष्टिपाता
। रक्षित ३. विध्य और ४. गोष्ठामाहिल। उनके शिष्यों में विन्ध्य प्रबल मेधावी था। उसने आचार्य से अभ्यर्थना की कि सहपाट से अत्यधिक विलम्ब होता है अत: ऐसा प्रबन्ध करें कि मुझे शीघ्र पाठ मिल जाए। आचार्य के आदेश से दुर्बलिका पुष्यमित्र ने उसे वाचना देने का कार्य अपने ऊपर लिया। अध्ययनक्रम चलता रहा। समयाभाव के कारण दुर्बलिका पुष्यमित्र अपना स्वाध्याय व्यवस्थित रूप से नहीं कर सके। वे नौवें पूर्व को भूलने लगे, तो आचार्य ने सोचा कि प्रबल प्रतिभा सम्पन्न दुर्बलिका पुष्यमित्र की भी यह स्थिति है तो अल्प मेधावी मुनि किस प्रकार स्मरण रख सकेंगे?
पूर्वोक्त कारण से आचार्य आर्यरक्षित ने पृथक्त्वानयोग का प्रवर्तन किया। चार अनुयोगों की दृष्टि से उन्होंने आगमों का वर्गीकरण भी किया।
___'सूत्रकृतांग चूर्णि' के अभिमतानुसार अपृथक्त्वानुयोग के समय प्रत्येक सूत्र की व्याख्या चरण करण, धर्म, गणित और द्रव्य आदि अनुयोग की दृष्टि से व सप्त नय की दृष्टि से की जाती थी, किन्तु पृथक्त्वानुयोग के समय चारों अनुयोगों की व्याख्याएँ अलग-अलग की जाने लगी।
___ यह वर्गीकरण करने पर भी यह भेद-रेखा नहीं खींची जा सकती कि अन्य आगमों में भिन्न वर्णन नहीं है। उत्तराध्ययन में धर्म कथाओं के अतिरिक्त दार्शनिक तत्त्व भी पर्याप्त रूप से हैं। भगवती सूत्र तो सभी विषयों का महासागर है ही। आचारांग आदि में भी यही बात है। सारांश यह है कि कुछ आगमों को छोड़कर शेष आगमों में चारों अनुयोगों का सम्मिश्रण है। एतदर्थ प्रस्तुत वर्गीकरण स्थूल वर्गीकरण ही रहा।
दिगम्बर साहित्य में इन चार अनुयोगों का वर्णन कुछ रूपान्तर से मिलता है। उनके नाम इस प्रकार हैं- १. प्रथमानुयोग २. करणानुयोग ३. चरणानुयोग ४. द्रव्यानुयोग। प्रथमानुयोग में महापुरुषों का जीवन चरित्र है। करणानुयोग में लोकालोकविभक्ति, काल, गणित आदि का वर्णन है। चरणानुयोग में आचार का निरूपण है और द्रव्यानुयोग में द्रव्य, गुण, पर्याय, तत्त्व आदि का विश्लेषण है।
दिगम्बर परम्परा आगमों को लुप्त मानती है अतएव प्रथमानुयोग में महापुराण और अन्य पुराण, करणानुयोग में त्रिलोक-प्रज्ञप्ति, त्रिलोक-सार, चरणानुयोग में मूलाचार और द्रव्यानुयोग में प्रवचनसार, गोम्मटसार आदि का समावेश किया गया है।
श्रीमद् राजचन्द्र ने चारों अनुयोगों का आध्यात्मिक उपयोग बताते हुए लिखा है--- 'यदि मन शंकाशील हो गया है तो द्रव्यानुयोग का चिन्तन करना चाहिये, प्रमाद में पड़ गया है तो चरण करणानुयोग का, कषाय से अभिभूत है तो धर्म कथानुयोग का और जड़ता प्राप्त कर रहा है तो गणितानुयोग का।'
अनुयोगों की तुलना वैदिक-साधना के विभिन्न पक्षों के साथ की
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