________________
220
जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क
चन्द्रिक - साकेत में, पृष्टिमातृक और पेढाल पुत्र - वाणिज्यग्राम में, पोटिल्ल - हस्तिनापुर में, वेहल्लकुमार- राजगृह नगरी में उत्पन्न हुए। ये सभी १० कुमार महाविदेह क्षेत्र से सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होंगे।
विशेष बिन्दु
धन्य कुमार का विवाह ३२ इभ्य कन्याओं के साथ हुआ। ये सभी कन्याएँ अपने साथ सोना-चांदी - रत्नजड़ित थाल, कटोरे, हार, रेशमी वस्त्र, घोड़े, दास-दासियाँ आदि ३२- ३२ वस्तुएँ दहेज में लाई। इस वर्णन से उस काल की सामाजिक व्यवस्था का प्रतिपादन होता है कि उस समय भी दहेज प्रथा प्रचलित थी, किन्तु दहेज की मांग नहीं की जाती थी। समाज में पुरुष की प्रधानता थी । अतः राजा ही नहीं श्रेष्ठी भी ३२ कन्याओं के साथ विवाह कर सकता था, किन्तु इनका त्याग करके संयम का पथ अपनाने में तनिक भी संकोच नहीं होता था ।
इस अध्ययन के पठन से उस समय की स्त्री जाति की उन्नत अवस्था का पता लगता है। उस काल में भी स्त्रियां पुरुष के समान अधिकार रखती थी और स्वयं उनकी बराबरी में व्यापार आदि बड़े-बड़े कार्य करती थी। यहां भद्रा नाम की स्त्री सार्थवाही का काम स्वयं करती थी और विशेष बात यह थी कि वह अपनी जाति वाले लोगों में किसी से कम नहीं थी ।
इस आगम के स्वाध्याय से हमें नित नवीन आत्महित की शिक्षाएँ मिलती हैं । उन शिक्षाओं को अपनाकर हम अपने जीवन को प्रफुल्लित एवं सुगन्धित बना सकते हैं। इस नवम अंग से हमें मुख्यतः निम्नलिखित शिक्षाएँ प्राप्त होती हैं
१. गुणी आत्माओं का गुणानुवाद कर गुणानुरागी बनना चाहिए। स्वयं भगवान महावीर ने धन्य अणगार के गुणों का जनता के समक्ष कथन किया। दूसरे में विद्यमान गुणों की प्रशंसा अवश्य करनी चाहिए जिससे उन गुणों के प्रति श्रोता की रुचि जागृत हो । अपने गुण की प्रशंसा सुनने से उस व्यक्ति का गुणों के प्रति आकर्षण बढेगा और वह धीरे-धीरे बहुगुणी हो जाएगा। झूठी प्रशंसा करने वाला तो आत्मघाती होता है, किन्तु गुणों का अनुमोदन न करने वाला भी महाघाती से कम नहीं होता।
२. महाराजा श्रेणिक ने जब धन्य अणगार के गुण भगवान के मुखारविन्द से सुने तो वे स्वयं उनकी स्तुति करने लगे। इस प्रसंग से पता चलता है कि यथार्थ गुणानुवाद प्रत्येक आत्मा को गुणों की ओर आकृष्ट करता है, परन्तु जो काल्पनिक गुणानुवाद होते हैं, वे उपहास्य हो जाते हैं ।
३. सभी साधकों ने अपनी प्रतिज्ञा का निर्वाह निष्ठा एवं उत्साहपूर्वक किया । फलस्वरूप वे अपने ध्येय को प्राप्त करने में सफल हो सके
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org