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अनुत्तरौपपात्तिकदशासूत्र संक्षेपण किया गया है। यही कारण है कि प्रथम वर्ग में जालिकुमार का और तृतीय वर्ग में धन्यकुमार का चरित्र ही कुछ विस्तार से आया है और शेष चरित्रों का सूचन मात्र हुआ है। इस आगम की आदि श्री जम्बू स्वामी की इस पृच्छा से हुई है कि श्रमण भगवान महावीर ने नौवें अंग में क्या भाव फरमाए हैं? उनकी जिज्ञासा-शमन हेतु सुधर्मा स्वामी द्वारा यह आगम प्रस्तुत किया गया। प्रथम वर्ग
यह वर्ग १० अध्ययनों में विभक्त है। प्रत्येक अध्ययन में क्रमश: जालि, मयालि, उवयालि, पुरुषसेन, वारिसेन, दीर्घदन्त, लष्ठदन्त, विहल्ल, वैहायस और अभयकुमार के संघर्षपूर्ण जीवन की कथा है। प्रथम अध्ययन में जालि कुमार के आत्मविजय की शौर्य गाथा है। जैन-बौद्ध संस्कृति के मुख्य केन्द्र, समृद्ध और वैभवशाली राजगृह नगरी के राजा श्रेणिक और रानी धारिणी के पुत्र रूप में जालिकुमार का जन्म हुआ। सिंह के दिव्य स्वप्न के साथ गर्भ को धारण करने वाली धारिणी रानी ने कालपरिपाक होने पर जालिकुमार को जन्म दिया। आठ कन्याओं के संग परिणय-सूत्र में बंधने के बाद जालि कुमार इष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध की विपुलता वाले मनुष्य संबंधी कामभोगों को भोगने में रत हो गए। राजसिक सुख भोगों से घिरे हुए राजकुमार ने जब सर्वस्वत्यागी भगवान् के दर्शन कर जिनवाणी से अपने कर्णयुगल को पवित्र किया तो उनके मन-मन्दिर में श्रद्धा का दीप प्रज्वलित हो उठा।
अत: प्रबुद्ध जालि कुमार ने माता पिता से आज्ञा लेकर प्रव्रज्या ग्रहण की। गुणरत्न संवत्सर नामक तप की आराधना करते हुए उन्होंने १६ वर्ष तक संयम साधना की। विपुलगिरि पर एक मास का संथारा पूर्ण कर 'विजय' नामक अनुत्तर विमान में उत्पन्न हुए और वहां से वे महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्धि प्राप्त करेंगे। शेष नौ अध्ययनों में ९ राजकुमारों का वर्णन जालि कुमार के समान है। कुछ भिन्नता है, वह निम्नलिखित है
वेहल्ल और वेहायस चेलना के पुत्र हैं। अभयकुमार नन्दा का पुत्र है। पहले के ५ कुमारों की श्रमण पर्याय १६ वर्ष की, तीन की श्रमण पर्याय १२ वर्ष की और दो की श्रमण पर्याय ५ वर्ष की है। मयालि, उवयालि, पुरुषसेन, वारिषेण, दीर्घदन्त, लष्ठदन्त, वेहल्लकुमार, वेहायस कुमार और अभयकुमार का उपपात (जन्म) अनुक्रम से वैजयन्त, जयन्त, अपराजित, सर्वार्थसिद्ध, सर्वार्थसिद्ध, अपराजित, जयन्त, वैजयन्त और विजय विमान में हुआ। कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य
मेघकुमार भी अनुत्तरौपपातिक हैं तब भी उनका वर्णन इस अंग
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