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________________ 206 जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क ४० के मोक्ष मन्तव्यों से अत्यधिक मिलता-जुलता है । ऐतिहासिक दृष्टि से यह स्पष्ट है कि सगर के समय में वैदिक लोग मोक्ष में विश्वास नहीं करते थे । अत: यह उपदेश किसी श्रमण संस्कृति के ऋषि का ही होना चाहिए। यजुर्वेद में एक स्थान पर अरिष्टनेमि का वर्णन इस प्रकार है- अध्यात्म यज्ञ को प्रकट करने वाले, संसार के सभी भव्य जीवों को यथार्थ उपदेश देने वाले, जिनके उपदेश से जीवों की आत्मा बलवान होती है, उन सर्वज्ञ नेमिनाथ के लिए आहुति समर्पित करता हूँ ।" डॉ. राधाकृष्णन ने स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि यजुर्वेद में ऋषभदेव, अजितनाथ और अरिष्टनेमि इन तीन तीर्थंकरों का उल्लेख पाया जाता है । " ४२ स्कन्दपुराण के प्रभास खण्ड में एक वर्णन है— अपने जन्म के पिछले भाग में वामन ने तप किया। उस तप के प्रभाव से शिव ने वामन को दर्शन दिये। वे शिव, श्यामवर्ण, अचेल तथा पद्मासन में स्थित थे । वामन ने उनका नाम नेमिनाथ रखा । नेमिनाथ इस घोरकलिकाल में सब पापों का नाश करने वाले हैं। उनके दर्शन और स्पर्श से करोड़ों यज्ञों का फल प्राप्त होता है । ४३ ૪ प्रभासपुराण में भी अरिष्टनेमि की स्तुति की गई है। महाभारत अनुशासन पर्व में "शूरः शौरिर्जिनेश्वर" पद आया है। विद्वानों ने "शूरः शौरिर्जनेश्वरः" मानकर उसका अर्थ अरिष्टनेमि किया है। ४५ लंकावतार के तृतीय परिवर्त में तथागत बुद्ध के नामों की सूची दी गई है। उनमें एक नाम "अरिष्टनेमि" है। संभव है अहिंसा के दिव्य आलोक को जगमगाने के कारण अरिष्टनेमि अत्यधिक लोकप्रिय हो गये थे जिसके कारण उनका नाम बुद्ध की नाम सूची में भी आया है। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. राय चौधरी ने अपनी कृति वैष्णव परम्परा के प्राचीन इतिहास में श्रीकृष्ण को अरिष्टनेमि का चचेरा भाई बतलाया है। कर्नल टॉड ने अरिष्टनेमि के संबंध में लिखा है कि मुझे ज्ञात होता है कि प्राचीनकाल में चार मेधावी महापुरुष हुए हैं, उनमें एक आदिनाथ हैं, दूसरे नेमिनाथ हैं, नेमिनाथ ही स्क्रेन्द्रीनेविया निवासियों के प्रथम ओदिन तथा चीनियों के प्रथम 'फो' देवता थे। प्रसिद्ध कोषकार डॉ. नगेन्द्रनाथ वसु, पुरातत्त्ववेत्ता डॉक्टर फुहरर, प्रो. वारनेट, मिस्टर करवा, डॉ. हरिदत्त, डॉ० प्राणनाथ विद्यालंकार प्रभृति अनेक विद्वानों का स्पष्ट मन्तव्य है कि भगवान् अरिष्टनेमि एक प्रभावशाली पुरुष थे। उन्हें ऐतिहासिक पुरुष मानने में कोई बाधा नहीं है। छान्दोग्योपनिषद् में भगवान् अरिष्टनेमि का नाम " घोर अंगिरस ऋषि' आया है, जिन्होंने श्री कृष्ण को आत्मयज्ञ की शिक्षा प्रदान की थी। धर्मानन्द कौशाम्बी का मानना है कि आंगिरस भगवान् अरिष्टनेमि का ही नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
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